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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.५ सू.१३३ बादरादीनामल्पबहुत्वनिरूपणम् १२४९ यिकाऽपर्याप्तापेक्षया पर्याप्ताः सूक्ष्मतेजस्कायिका संख्येयगुणाः । 'सुहुमपुढवी आउ-वाउ पज्जत्तगा विसेसाहिया' पूर्वतः सूक्ष्मपृथिवीकायिकपर्याप्ताः ततः सूक्ष्माऽप्कायिकपर्याप्ताः ततश्च-सूक्ष्मवायुकायिकपर्याप्ता विशेषाधिकाः इति । _ 'सुहुम-निओया अपज्जत्तगा असंखेजगुणा' पूर्वात्-सूक्ष्म निगोदा अपर्याप्तका असंख्येगुणाः । 'सुहुम निगोया पन्जत्तगा असंखेजगुणा' अपर्याप्तकेभ्यः पर्याप्तसूक्ष्मनिगोदा असंख्येयगुणा अधिका भवन्ति । 'बायरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अणंतगुणा' सूक्ष्म निगोदपर्याप्तकेभ्यो बादरवनस्पतिकायिकाः पर्याप्ता अनन्तगुणाः । 'बायरा पज्जत्तगा विसेसाहिया' ततो बादराः पर्याप्ताः सामान्यतो विशेषाधिकाः । 'बायरवणस्सइ अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' ततो वनस्पतिकाविशेषाधिक होते गये है । 'सुहुम तेउकाइय पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तक की अपेक्षा पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक संख्यातगुणें अधिक हैं । 'सुहुम पुढवी आउ वाउ पज्जत्तणा विसेसाहिया' पूर्व की अपेक्षा सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, इनकी अपेक्षा सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्त और इनकी भी अपेक्षा सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त ये विशेषाधिक है 'सुहुम निओया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा सूक्ष्म निगोद अपर्यासक असंख्यातगुणें अधिक हैं' 'सुहुम निगोया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' और अपर्याप्तक सूक्ष्म निगोदों की अपेक्षा पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद असंख्यातगुणें अधिक हैं। 'बायर वणस्सइकाइया पज्जत्तगा अणंतगुणा' पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव पर्याप्त सूक्ष्म निगोदों की अपेक्षा अनन्तगुणें अधिक हैं । 'बायरा पज्जत्तगा विसेसाहिया' सामान्य बादर पर्याप्सक पर्याप्त ते य सध्यातरी थारे छे. 'सुहुम पुढवी आउ वाउ अपज्जत्तगा विसेसाहिया' ५यति सूक्ष्म ते४२४यिन। ४२di सूक्ष्म पृथ्वीय विशेषाधि छ, 'सुहुम निओया अपज्जत्तगा असखेज्जगुणा' तेना ४२di सूक्ष्म निगाह भारत४ मध्यात पधारे छे. 'सुहम निओया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' मने पर्याप्त सूक्ष्म निगोहाना ४२तां पर्याप्त सूक्ष्म निगाह यस च्यात वधारे छे. 'बायर वणस्सइकाइया पज्जत्तगा अणंतगुणा' પર્યાપ્તક બાદર વનસ્પતિકાયિક જીવ પર્યાપ્તક સૂક્ષમ નિગોદના કરતાં मन तग धारे छ. 'बायरा पज्जत्तगा विसेसाहिया' सामान्य ४२ ५यति, पर्याप्त मा६२ वनस्पतियिोना ४२di विशेषाधि छ, 'बायर जी० १५७ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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