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________________ १२४८ जीवाभिगमसूत्रे ततः ० पज्जत्ता असंख्येयगुणा' ततो बादरनिगोदाः पर्याप्ता असंख्येयगुणाः । ' बायरपुढवी आउवा उकाइ अपज्जत्तगा असंखेज्ज०' ततो बादरपृथिवीकायिका अपर्याताः तत बादराकायिका अपर्याप्ताः ततोऽपि बादरवायुकायिका अपर्याप्ताः क्रमशः परेपरेऽसंख्येयगुणाः । 'सुहुम तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्ज० ' सूक्ष्मतेजस्कायिका येsपर्याप्तस्तेऽसंख्येयगुणा अधिका: । 'सुहुमपुढवी आउवाउ अपज्जत्तगा विसेसाहिया' ततः सूक्ष्मपृथिवीकायिका अपर्याप्ताः ततश्व सूक्ष्माऽकायिका अपर्याप्ताः ततोऽपि सूक्ष्मवायुकायिका अपर्याप्ताः क्रमशः परे परे विशेषाधिकाः । ' मुहुमते उकाइय पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्मवायुकावायुकायिक पर्याप्त की अपेक्षा बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणें अधिक है । 'पत्तेय असंखज्ज०' इनकी अपेक्षा प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'बायर निओय पज्जत्ता असंखेज्जगुणा' प्रत्येक शरीर बदर वनस्पतिकायिक जीव की अपेक्षा पर्याप्त बाद निगोद जीव असंख्यातगुणें अधिक हैं 'बायर पुढवी आउ वाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणे हैं इनकी अपेक्षा बादर अकायिक अपर्याप्त इनकी भी अपेक्षा बादर वायुकायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'सुहुम तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्ज' इनकी अपेक्षा अपर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक असंख्यात - गुणें अधिक हैं । 'सुम पुढवी आउ वाउ अपज्जत्तगा' इनकी अपेक्षा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक, इनकी अपेक्षा अपर्याप्त सूक्ष्म अष्कायिक इनकी अपेक्षा अपर्याप्त वायुकायिक ये सब क्रमशः आगे २ खेज्जगुणा' महर वायुअयि पर्याप्तना रतां महर ते स्थायि अपर्याप्त असंख्यातगण वधारे छे. 'पत्तेय० असंखेज्जगुणा' तेना ४२तां प्रत्ये! शरीर महर वनस्पतिप्रायि लव असंख्यातगा वधारे छे. 'बायर पुढवी आउ वाउ काइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' तेना पुरती जाहर पृथ्वी अयि अयર્યાપ્તક, તેના કરતાં ખાદર અપ્સાયિક અપર્યાપ્તક, તેના કરતાં પણ ખાદર વાયુ अयि अपर्याप्त असंख्यातगा वधारे छे. 'सुहुम तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' तेना ४२तां अपर्याप्त सूक्ष्म तेनायिङ असभ्याता वधारे छे. 'हुम पुढवी आउ वाउ अपज्जत्तगा' तेना ४२ अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वी अयि તેના કરતાં અપર્યાપ્તક સૂક્ષ્મ અકાયિક તેના કરતાં અપર્યાપ્તક વાયુકાયિક ये मधा उमश: पछि पछिना विशेषाधिक थता गयेस छे. 'सुहुम तेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' सूक्ष्म वायुअयि अपर्याप्ताना रतां पर्याप्त सूक्ष्म જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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