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________________ १२५० जीवाभिगमसूत्रे यिका अपर्याप्ता असंख्येयगुणा अधिकाः 'बायरा अपज्जत्तगा विसे० ' ततो बादरा अपर्याप्ता विशेषाधिकाः । ' बायरा विसेसाहिया' बादराऽपर्याप्तकापेक्षया बादराः सामान्यतो विशेषाधिकाः । 'सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' सामान्य बादरतः सूक्ष्मवनस्पतिकायिका अपर्याप्तका असंख्येयगुणाधिकाः । 'हुमा अपज्जत्तगा विसेसाहिया' तदपेक्षया सूक्ष्मा अपर्याप्ता विशेषाधिकाः । 'सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' सूक्ष्मापर्याप्तापेक्षया सूक्ष्मवन स्पतिकायिकाः पर्याप्ताः संख्ये गुणा अधिकाः । ' सुहुमा पज्जतगा विसेसा - हिया' पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकापेक्षया सूक्ष्माः पर्याप्ता विशेषाधिकाः । बादर वनस्पतिकायिकों की अपेक्षा विशेषाधिक हैं । 'बायर वणस्स - अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' सामान्य बादर पर्याप्तकों की अपेक्षा अपर्यातक बादर वनस्पतिकायिक जीव असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'बायर अपज्जन्त्तगा विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा बादर अपर्याप्त विशेषाधिक हैं । 'बायरा विसेसाहिया' बादर अपर्याप्तकों की अपेक्षा सामान्य बादर जीव विशेषाधिक हैं । 'सुहुम वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' सामान्य बादर जीवों की अपेक्षा अपर्यातक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक असंख्यातगुणें अधिक हैं 'सुहुमा अपज्जतगा विसेसाहिया' पूर्व की अपेक्षा अपर्याप्तक सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं । 'हुम वणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा' अपर्याप्तक सूक्ष्म जीवों की अपेक्षा सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव संख्यातगुणें अधिक हैं । 'सुहमा पज्जत्तगा विसेसाहिया' सूक्ष्म पर्यातक बनस्पतिकायिकां की अपेक्षा सूक्ष्म पर्याप्तक जीव विशेषाधिक है 'सुहुमा वणस्स इकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' સામાન્ય પર્યાપ્તકાના કરતાં अपर्याप्त आहर वनस्पतिायि असभ्याता वधारे छे. 'बायर अपज्जत्तगा विसेसाहिया' तेना ४२तां मार अपर्याप्त विशेषाधिः छे. 'बायरा विसेसाहिया' आहर अपर्याप्तमेना रतां सामान्य मोहर व विशेषाधि छे. 'सुहुम वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' सामान्य माहर लवोना उरतां अयर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतियिः असंख्यातगला वधारे छे. 'अपज्जत्तगा विसेसा • हिया' तेना ४२तां अपर्याप्त सूक्ष्म लव विशेषाधिः छे. 'हुम वणस्सइकाइया पज्जत्तगा स ंखेज्जगुणा' अपर्याप्त सूक्ष्म लवोना रतां सूक्ष्म वनस्पतिायि पर्याप्त लव संख्याता वधारे छे. 'सुहुमा पज्जत्तगा विसेसाहिया' सूक्ष्म પર્યાપ્તક વનસ્પતિકાયિકાના કરતાં સૂક્ષ્મ પર્યાપ્તક જીવ વિશેષાધિક છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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