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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.४ सू.१२६ पञ्चविधसंसारसमापन्नकजीवनि० ११४७ कालतः कियच्चिरं भवतीति प्रश्नः भगवानाह-गौतम ! जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण संख्येयवर्षसहस्राणि एकेन्द्रियस्य हि पृथिवीकायिकस्योत्कर्षतो द्वात्रिंशद्वर्षसहस्राणि भवस्थितिः अप्कायिकस्य सप्तवर्षसहस्राणि तेजस्कायिकस्य त्रीणिरात्रिन्दिवानी बायुकायस्य त्रीणि वर्षसहस्राणि वनस्पतिकायस्य-दशवर्षसहस्राणि ततो निरन्तर कतिपयपर्याप्तभवसंकलनया संख्येयान्येव वर्षसहस्राणि घटन्ते इति ‘एवं बेइ दिए वि' एवं द्वीन्द्रियस्यापि 'नवरं संखेज्जाइ वासाइ' नवरं पर्याप्तकैकेन्द्रियाऽपेक्षया वैलक्षण्यमेतत् यत् संख्येयानि वर्षाणि द्वीन्द्रिये खलु उत्कर्षतो द्वादशवर्षाणि मवस्थितिः, न च सर्व भवेष्वपि उत्कृष्टा स्थितिर्भवत्येवेति है-'गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखिज्जाई वाससहस्साई' हे गौतम ! पर्याप्तक एकेन्द्रिय जीव की कायस्थिति का काल जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से संख्यात हजार वर्षो का है यह इस प्रकार से है-एकेन्द्रिय पृथिवीकायिक की उत्कृष्टभव स्थिति २२ हजार वर्ष की है अप्कायिक की सात हजार वर्ष की है तेजस्कायिक की तीन रात दिन की है। वायुकायिक की तीन हजार वर्ष की है और वनस्पतिकायिक की दश हजार वर्ष की है। इन जीवों के निरन्तर कतिपय पर्याप्त भवों की संकलना से संख्यात हजार वर्षों का प्रमाण सध जाता है एवं बेइंदिए वि णवरं संखेजाई वासाई' पर्याप्तक द्वीन्द्रिय जीवों की कायस्थिति का प्रमाण भी जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से संख्यात वर्षों का है दीन्द्रिय जीवों की भवस्थिति का प्रमाण १२ वर्ष का है द्वीन्द्रिय जीवों के सब भवों में यही उत्कृष्ट स्थिति हो ऐसा नियम नहीं हो सहस्साई' हे गौतम ! ५४ ४ ४द्रिया अपनी स्थितिमा ४॥ જઘન્યથી એક અંતમુહૂર્ત છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી સંખ્યાત હજાર વર્ષો છે. તે આ પ્રમાણે છે-એક ઇંદ્રિયવાળા પૃથ્વીકાયિક જીવની ઉત્કૃષ્ટ ભવસ્થિતિ ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષની છે. અપ્રકાયિકની ૭ સાત હજાર વર્ષની છે. તેજસ્કાયિકની ત્રણ રાત દિવસની છે. વાયુકાયિકની ત્રણ હજાર વર્ષની છે. અને વનસ્પતિકાયિક જીવની દસ હજાર વર્ષની છે. આ જીના નિરંતર કેટલાક પર્યાપ્ત ભવની સંકલન-ગણનાથી સંખ્યાત હજાર વર્ષોનું પ્રમાણ મળી जय छे. 'एवं बेइंदिए वि णवर संखेज्जाइं वासाइ' पर्यात में द्रियाणा જીની કાયસ્થિતિનું પ્રમાણ પણ જઘન્યથી એક અંતમુહૂર્તનું છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી સંખ્યાત વનું છે. બે ઈન્દ્રિયવાળા ની ભાવસ્થિતિનું પ્રમાણ ૧૨ બાર વર્ષનું છે. બે ઈદ્રિયવાળા જેના બધાજ ભવમાં આજ ઉત્કૃષ્ટ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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