________________
११४२
जीवाभिगमसूत्रे केवलं-एकोन पंचाशद्रात्रिदिवानि उत्कर्षनः जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् । 'चउरिदियस्स छम्मासा' चतुरिन्द्रियस्य च जघन्योत्कर्ष भ्यामन्तर्मुहूर्त-षण्मासाश्च। 'पंचिंदियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं' पञ्चेन्द्रियस्य तु जघन्येनाऽन्तर्मुहर्तम् उत्कर्षेय त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि । 'अपज्गतग एगिदियस्स णं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं' अपर्याप्तकै केन्द्रियस्य खलु भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः ? गौतम ! जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेणाऽपि, तथापि उत्कृष्टपदमर्यादया किश्चिद् वैलक्षण्यं कल्पइसी प्रकार तेइन्द्रिय जीव की ४९ दिन रात की स्थिति कही गई हैयह कथन उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा कहा गया जानना चाहिये तथा तेइन्द्रिय जीव की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की कही गई है 'चउरिंदियस्स छम्मासा' चौइन्द्रिय जीव की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति ६ मास की कही गई है 'पंचिदियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई तथा पंचेन्द्रिय जीव की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है । 'अपज्जत्तग एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' हे भदन्त ! अपर्याप्त एकेन्द्रिय जीय की स्थिति कितने काल की है ? उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं' हे गौतम ! अपर्याप्तक एकेन्द्रिय जीव की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा एक अन्तर्मुहर्त की है परन्तु उत्कृष्ट स्थिति का जो अन्तर्मुहूर्त है वह વાળા જીવની ૪૯ ઓગણપચાસ રાતદિવસની સ્થિતિ કહેવામાં આવેલ છે. આ કથન ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાથી કહેલ છે તેમ સમજીલેવું તથા તેઈન્દ્રિય
वनी धन्य स्थिति से मतभुत नी वामां मावेस छ. 'चरिदियस्स छम्मासा' या२न्द्रिय वाणा नी धन्य स्थिति से मतभुत नी भने उत्कृष्ट स्थिति छ भासनी उस छ. 'पंचिंदियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' तथा पांयन्द्रिय पानी धन्यस्थिति એક અંતમુહૂર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમની છે. 'अपज्जत्तग एगिदियाणं केवइं कालं ठिई पण्णत्ता' 3 मावन् ! अपर्याप्त એકેન્દ્રિય જીવની સ્થિતિ કેટલી કહેવામાં આવેલ છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે छ -'गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं' गौतम ! અપર્યાપ્તક એક ઈન્દ્રિય વાળા જીવની સ્થિતિ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી અપેક્ષાથી એક અંતર્મુહૂર્તની છે, પરંતુ ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિનું જે અંતર્મુહૂર્ત છે. તે
જીવાભિગમસૂત્ર