SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.४ सू.१२६ पञ्चविधसंसारसमापन्नकजीवनि० ११४१ अथ के ते एकेन्द्रियाः किं लक्षणं--कति भेदवन्तः ? गौतम ! एकेन्द्रिया द्विविधाः तद् यथा-पर्याप्तकाश्चाऽपर्याप्ताकाश्च २ एवं द्वीन्द्रियादि यावत्पश्चेन्द्रियाः द्विविधाः-पर्याप्तकाश्थ, अपर्याप्तकाश्च ज्ञेयाः । 'एगिदियस्स णं भंते ! केवइय कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त-उक्कोसेणं बावीसं वाससह स्साई' एकेन्द्रिय जीवस्य खलु भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः जीवनसमयः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-गौतम ! जघन्येन न्यूनतः खलु अन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षतश्च द्वाविंशतिवर्षसहस्राणि स्थितिकालः प्रज्ञप्तः इति । 'बेइंदिय० जहन्नेणं अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणं वारस संवच्छराई' द्वीन्द्रियस्य जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण द्वादश संवत्सरान् । ‘एवं तेइंदियस्स एगणपण्णं राईदियाई' एवं त्रीन्द्रियस्य जीवनकालः जिनके अपर्याप्ति नाम कर्म का उदय होता है वे अपर्याप्तक जीव कहे गये हैं। 'एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' हे भदन्त ! एकेन्द्रिय जीव की कितने काल की स्थिति कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई' हे गौतम ! एकेन्द्रिय जीव की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की कही गई है और उत्कृष्ट से २२ हजार वर्ष की कही गई है । 'बेइंदिय० जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराई' हे भदन्त ! दो ईन्द्रिय जीव की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है हे गौतम ! दो इन्द्रिय जीव की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की कही गई है और उत्कृष्ट से वारह वर्ष की कही गई है ‘एवं तेइंदियस्स एगणपण्णं राइं दियाई તેઓ પર્યાપ્તક કહેવાય છે અને જેને અપર્યાપ્તિક નામકર્મને ઉદય હોય છે तमान मर्यास४ ७४७॥ छे. 'एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिर्ड पणत्ता' सावन् ! से छन्द्रिय पाए पनी स्थिति सी हवामा मावत छ ? २१। प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री छ -'गोयमा ! जहणणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई' 3 गौतम ! ४४न्द्रिय वाणा જીવની સ્થિતિ જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્તની કહેવામાં આવેલ છે અને उत्कृष्ट थी २२ वीस १२ वर्षनी वामां मास छ. 'वेइंदिय० जहणेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बारससंवच्छराईले भगवन् ! मेन्द्रिय पाणाव નીસ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-હે ગૌતમ ! બેઈન્દ્રિય વાળા જીવની સ્થિતિ જઘન્યથી એક અંત હતની કહેવામાં આવેલ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી બાર વર્ષની કહેવામાં આવેલ छे. 'एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राई दियाई मे प्रमाण अन्द्रिय જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy