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________________ १०९६ जीवाभिगमसूत्रे ग्रैवेयकान्ताः सर्वेऽपि ज्ञेयाः। 'अनुत्तरोववाइया नाणी' अनुत्तरोपपातिकदेवा ज्ञानिन एव 'नो अन्नाणी' नो अज्ञानिनः 'तिण्णि णाणा नियमा' नियमतस्त्रीणि ज्ञानानि, 'तिविहे जोगे' त्रिविधो योगः-काययोगो १ मनोयोगो २ वचनयोगश्चेति । 'दुविहे उवजोगो सव्वेसिं' द्विविध उपयोगः सर्वेषां देवानाम् 'जाव अणुत्तरा' यावदनुत्तरोपपातिका सौधर्मेशानादारभ्य देवानां द्विविध उपयोगो द्रष्टव्यः सू० ||१२१॥ अथाऽवधिक्षेत्रपरिमाणम् मूलम्-सोहम्मीसाण देवा ओहिणा केवइयं खेत्तं जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं अवही जाव रयणप्पभा पुढवी उड्ढे जाव साइं विमणाई तिरियं जाव असंखेजा दीवसमुदा एवं सकीसाणा पढमं दोच्चं च सणंकुमारमाहिंदा । तच्चं च बंभलंतग सुक्कसहस्सारग नियम तीन ज्ञान वाले होते हैं और अज्ञानी होते हैं वे नियम से पूर्वोक्त तीन अज्ञान वाले होते हैं । 'अनुत्तरोववाइया नाणी' अनुत्तरोपपातिक देव नियम से ज्ञानी ही होते हैं अज्ञानी नहीं होते हैं। यही बात 'नो अण्णाणी तिण्णि णाणा नियमा' । “तिविधे जोगे दुविहे उवयोगे सव्वेसिं जाव अणुत्तरा' योग-काययोग मनोयोग और वचनयोग इस प्रकार से तीन प्रकार का होता है और उपयोग दो प्रकार का होता है-एक ज्ञानोपयोग और दूसरा दर्शनोपयोग ये दोनों उपयोग सब देवों के होता है-सौधर्म से लेकर अनुत्तरोपपातिकान्त देवों के ये योग और उपयोग दोनों होते हैं। इनके अस्तित्व में वहां हीनाधिकता नहीं है ॥१२१॥ જ્ઞાન વાળા હોય છે. અને જેઓ અજ્ઞાની હોય છે, તેઓ નિયમથી पूर्वरित त्राण सज्ञान वाणा डोय छे. 'अणुत्तरोववाइया नाणी' मनुत्तरे।५पाति वो नियमयी ज्ञानी होय छे. अज्ञानी होता नथी. से पात 'नो अण्णा. णी तिणि णाणा नियमा, तिविहे जोगे दुविहे उवओगे सव्वेसिं जाव अणुत्तरा' ચણ-કાયાગ, મ ગ અને વચન આ પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર હોય છે. અને ઉપગ બે પ્રકારના હોય છે. એક જ્ઞાનપગ અને બીજે દર્શનેપછે. આ ઉપયોગ એ બધા જ દેવોને હોય છે. સૌધર્મથી લઈને અનુત્તરો. પપાતિક દેવોને એ વેગ અને ઉપયોગ બને હોય છે. તેના અસ્તિત્વમાં હીના ધિકતા હોતી નથી. સૂ૦૧૨ના જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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