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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. १२९ देवविमान पृथिव्याः बाहल्यादिकम् १०९५ ववाइया सम्मदिट्टी णोमिच्छादिट्टी णो सम्मामिच्छादिट्टी' अनुत्तरोपपातिक देवाः सम्यग्दृष्टयः नो मिथ्यादृष्टयो नो सम्यङ् मिध्यादृष्टयः । तेषां तथा स्वभावात् इति । सम्प्रति ज्ञानाऽज्ञानमधिकृत्याह - 'सोहम्मीसाणा किं णाणी अन्नाणी ? गोमा ! दोवि, तिनि नाणा' सौधर्मेशानयोः खलु भदन्त किं ज्ञानिनोऽज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह - द्वयोपि ज्ञानिनोऽपि भवन्त्यज्ञानिनोऽपि तत्र ये ज्ञानिनस्ते नियमात् त्रिज्ञानिनः तद्यथा - आभिनिबोधिक ज्ञानिनः १ श्रुतज्ञाज्ञानिनः अवधिज्ञानिच 'तिणि आण्णाणा नियमा' नियमात्ते त्र्यज्ञानिनः मत्यज्ञानिनः १ श्रुताऽज्ञानिनः २ विभङ्गज्ञानिनश्च । 'जाव गेवेज्जा' एवं सनत्कुमारात् होते हैं मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और सम्यग मिथ्यादृष्टि भी होते है । 'अणुत्तरोववाइया देवा सम्मदिठ्ठी णो मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी' परन्तु अनुत्तरोपपातिक देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं वे न मिथ्या दृष्ट होते हैं और न सम्यग् मिथ्यादृष्टि होते हैं। क्योंकि इनका ऐसा ही स्वभाव होता है 'सोहम्मीसाणा किं णाणी, अण्णाणी' हे भदन्त ! सौधर्म और ईशान के देव कया ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते है ? 'गोयमा ! दो वि' हे गौतम! ये ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते है । जो इनमें ज्ञानी होते हैं वे नियम से मतिज्ञानी होते है और श्रुतज्ञानी होते है और अधिज्ञानी होते हैं। और जो अज्ञानी होते है वे नियम से मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी और विभंगज्ञानी है । 'जाव गेवेज्जा' इसी तरह से सनत्कुमार से लेकर ग्रैवेयकान्त देव सब ज्ञानी भी होते है और अज्ञानी भी होते हैं जो ज्ञानी होते है वे होय छे, भने सम्यई मिथ्या दृष्टि वाजा पशु होय छे. 'अणुत्तरोववाइया देवा सम्मदिठ्ठी णो मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी' परंतु अनुत्तरीપપાતિક દેવો સમ્યક્ દષ્ટિ વાળા હોય છે, તેઓ મિથ્યાદ્રષ્ટિ વાળા હતા નથી. તેમજ સમ્યક્ મિથ્યા દષ્ટિ વાળા પણ હાતા નથી. કેમકે તેમના स्वभाव ४ सेवो होय छे. 'सोहम्मीसाणा किं णाणी अण्णाणी' हे भगवन् સૌધમ અને ઈશાન દેવલે કના દેવો શું જ્ઞાની હાય છે ? કે અજ્ઞાની होय छे ? 'गोयमा ! दो वि' हे गौतम! तेथे ज्ञानी पशु होय छे, અને અજ્ઞાની પણ હેાય છે. તેમાં જે જ્ઞાની હાય છે, તેએ નિયમથી મતિજ્ઞાન વાળા હાય છે. શ્રુત સાન વાળા હેાય છે. અને અવધિજ્ઞાન વાળા હેાય છે. તથા તેઓમાં જેએ અજ્ઞાની હોય છે, તેએ નિયમથી भत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी भने विलज्ञानी होय छे. 'जाव गेवेज्जा' मा प्रभा સનત્કુમાર દેવોલેાકથી લઇને ત્રૈવેયક સુધીના બધા દેવો જ્ઞાની પણ હોય છે. અજ્ઞાની પણ હોય છે. તેમાં જે જ્ઞાની હોય છે, તેએ નિયમથી ત્રણ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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