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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.११६ जम्बूद्वीपे तारारूपस्यान्तरादि नि० २००५ केवलं परिवारतुडिएण सद्धिं भोगभोगाई बुद्धीए-नो चेवणं मेहुणवत्तियं' अन्यदप्युत्तरं खलु गौतम ! चन्द्रोहि ज्योतिषेन्द्रो ज्योतिषां राजा चन्द्रावतंसकविमाने सभायां सुधर्मायां चन्द्रे सिंहासने चतुर्भिः सामानिकसहस्रैः षोडशभिरात्मरक्षकदेवानां च सहस्रैर्यावत, अन्यैर्वा बहुभिज्योतिषदेवैर्देवीभिश्च साध संपरिवृतः महताहतगीतवादिततंत्रीतलतालत्रुटितघनमृदङ्गपटुप्रवादितरवेण साकं भोगभोगान् भुञ्जानो विहां न प्रभुः। किन्तु-केवलं बुद्धया-ध्यानमात्रेणैव निजान्त:पुरपरिवारैः प्रभुःदिव्यभोगान् ऋते-मैथुनात् । ___'सूरस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कइ अग्गमहिसीओपन्नत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसओ पन्नत्ताओ, तं जहा-सूरप्पभा-आयवप्पभाअच्चिमाली-पभंकरा एवं अवसेसं जहा चंदस्स' सूर्यस्य खलु भदन्त ! ज्योतिषेसम्बन्ध अर्थ यहां पर किया गया है 'केवलं परियार तुडिएण सद्धिं भोगभोगाई बुद्धीए नो चेव णं मेहुणवत्तिय भोगोपभोगों को भोगना केवल अपने अन्तःपुर के परिवार के साथ ही मन में विचार करने मात्र से ही वह कर सकता है साक्षात् मैथुन सेवन करने के रूप में वह भोगोपभोगों को नहीं भोग सकता है। 'सूरस्स णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पन्नताओ' हे भदन्त ! ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज सूर्य की अग्रमहिषियां कितकी कही गई है ? 'गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णताओ' हे गौतम ! ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज सूर्य की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं 'तं जहा' सूरप्पभा, आयवप्पभा, अच्चिमाली, पभ. करा' उनके नाम इस प्रकार से हैं-सूर्यप्रभा, आतपप्रभा, अर्चिमाली 'केवल परियार तुडिएण सद्धिं भोगभोगाई बुद्धीए नो चेव णं मेहणवत्तियं' ભેગપગોને ભેગવવાનું કેવળ પિતાના અંતઃપુરના પરિવારની સાથે જ મનમાં વિચાર કરવા માત્રથી જ તે કરી શકે છે. સાક્ષાત્ મૈથુન સેવન કરવાના રૂપમાં તે ભેગે પગને ભેગવી શકતા નથી. 'सूरस्स णं भंते ! जोतिसि दस्स जोतिसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ' હે ભગવન! તિન્દ્ર તિષરાજ સૂર્યની અગ્રમહિષિયે કેટલી કહેવામાં मावेस छ ? 'गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' 3 गौतम ! यति. पेन्द्र ज्योतिष२००१ सूर्य नी या२ २५महिषयो ४पामा मावस छे. 'तं जहा सूरप्पभा, आयवप्पभा अच्चिमाली, पभंकरा' तेमना नामी २॥ प्रभारी छ. सूर्य प्रमा, सातपप्रभा, मथिभासी मने प्रल ४२१. 'एवं अवसेसं जहा चंदस्स णवरं सूरवडिसए विमाणे सूरंसि सीहासणंसि तहेव सव्वंसि पि गहाईणं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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