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________________ १००४ जीवाभिगमसूत्रे तदेतेनार्थेन गौतमा ! नो प्रभुश्चन्द्रो ज्योतिषराजश्चन्द्रावतंसके विमाने सभायां सुधर्मायां चन्द्राभिधाने सिंहासने च त्रुटिकेन-अन्तःपूरेण सह दिव्य भोगभोगान् भुञ्जानो यथा सुखं विहर्तुम् 'अदुत्तरं च ण गोयमा ! पभू चंदे जोइसिंदे जोइ. सराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदसि सी हासणंसि चउहिं सामाणिय साहस्सीहिं जाव सोलसहिं आयरक्खदेवाणं साहस्सीहिं-अन्नेहिं बहूहि जोइसिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिबुडे महयाहयनदृगीयवाइयततीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं-भोगभोगाई मुंजमाणे विहरित्तएबैठकर वाजाओं के मधुर निनाद के श्रवण पूर्वक दिव्य ऐसा भोगोपभोग का उपयोग करने में समर्थ नहीं है । 'अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव सोलसहिं आयरक्खदेवाणं साहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि जोतिसिएहिं देवेहिं य सद्धिं संपरिबुडे' परन्तु हे गौतम ! वह ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में और सुधर्मासभा में चन्द्रसिंहासन पर चार हजार सामानिक देवों से यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवों से तथा और भी अनेक ज्योतिष्क देवों से एवं देवियों से घिरा हुओ होकर 'महयाहयणगीइवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए' जोर २ से बजाये गये नृत्य में गीत में वादिनों के तंत्री के तल के ताल के, त्रुटित के घन के और मृदंग के चतुर बजाने वाले के द्वारा उत्थित शब्दों से दिव्य भोगोपभोगों को भोग सकने के लिये समर्थ है । 'पभू' शब्द का पवार समथ नथी 'अदुत्तरंच णं गोयमा ! पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदमडि सए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहि सामाणिय साहस्सीहि जाव सोलसहिं आयरक्खदेवाणं साहस्सीहि अन्नेहि बहूहि जोतिसिएहिं देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिवुडे' ५२तु है गौतम ! से ज्योतिषन्द्र જ્યોતિષરાજ ચંદ્ર ચંદ્રાવતંસક વિમાનમાં અને સુધર્માસભામાં ચંદ્ર સિંહા સનની ઉપર ચાર હજાર સામાનિક દેવેથી યાવત્ સોળ હજાર આત્મરક્ષક દેવથી તથા બીજા પણ અનેક તિષ્ક દેવોથી અને દેવિયોથી ઘેરાયેલ थईन 'महयाहयणट्टगीइवाइयतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए' १२ रथी पावामां आवेस नृत्यमा ગીતમાં વાજીંત્રના તંત્રીના તલના તાલમાં ત્રુટિતને ઘન અને મૃદંગને ચતુર વગાડવા વાળાઓ દ્વારા ઉસ્થિત શબ્દોથી દિવ્ય એવા ભેગેપભોગને ભોગવવા માટે સમર્થ છે. “મૂ' શબ્દને સંબંધ અહીયાં કરવામાં આવેલ છે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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