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________________ ५७० जीवाभिगमसूत्रे मनुजानां प्रथमयुग्मिनां कीदृशः-किमाकारकः आकारभावप्रत्यवतारः-शरीराकारादिस्वरूपलक्षणः प्रत्यवतारः प्रज्ञप्तः-कथित इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'ते णं मणुया' ते खलु युग्मिमनुजाः 'अणुवमतरसोमचारुरूवा: अनुपमतरसोमचारुरूपाः चन्द्रवत् अत्यन्त सुन्दररूपवन्तः ‘भोगत. मगयलक्खणा' भोगोत्तमगतलक्षणाः अत्रोत्तम शब्दस्य परनिपातः प्राकृतत्वात्, तेन उत्तमाश्च ते भोगाश्चेति उत्तमभोगाः, तद्गतानि तत्संसूचकानि लक्षणानि येषां ते तथा उत्तमभोगसूचकलक्षयुक्ता इत्यर्थः। 'भोगस स्सिरीया' भोगसश्रीका:-भोगेनशरीरेण सश्रीकाः शोभायुक्ताः 'सुजायसव्वंग सुंदरंगा' सुजातसर्वाङ्ग सुन्दराङ्गाः सुजातानि यथोक्तप्रमाणोपेतत्वेन शोभनजन्मानि यानि सर्वाणि उशिरः प्रभृत्यगानि, तैः सुन्दरमङ्ग शरीरं येषां ते तथा। 'सुपइट्ठिय कुम्मचारुचलणा' सुप्रतिष्ठित कूर्मचारुचरणाः सुप्रतिष्ठिते सुन्दराकारेण स्थिते कूर्मवत् कूर्मपृष्ठवदुन्नते चरणे येषां ते तथा, 'रतुप्पलपत्तमउय सुकुमाल कोमलतला' रक्तोत्पल पत्र मृदुकसुकुमारभदन्त ! उस एकोरुक द्वीप में रहने वाले मनुष्यों का आकार भाव का प्रत्यवतार अर्थात् आकारादि रूप वगैरह-कैसा कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते है-'गोयमा!' हे गौतम ! 'तेणं मणुया' एकोरुक द्वीपके मनुष्य 'अणुवमतरसोमचारुरूवा' चन्द्रमाकीतरह बहुत अधिक सुन्दर रूपवाले होते है 'भोगुत्तमगयलक्खणा' वे मनुष्य उत्तम २, भोगों के सूचक लक्षणों वाले होते है। 'भोग सस्सिरीया' भोग जन्य श्री शोभा से युक्त होते है । 'सुजाय सव्वंग सुन्दरंगा शरीर प्रमाण के अनुसार प्रमाणोपेत मस्तक आदि उनका अंग जन्म से ही अधिक सुन्दर होने से उसका शरीर सुन्दर होता हैं 'सुपइटिय कुम्मचारूचलणा' सुन्दर आकार वाले तथा कच्छपकी पीठ जैसे उन्नत चरण वाले होते हैं હે ભગવન તે એકરૂક દ્વીપમાં રહેવાવાળા મનુષ્યને આકાર ભાવને પ્રત્યવતાર અર્થાત્ આકાર વિગેરે રૂપ કેવું કહેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु श्री गौतमस्वाभान ४ छ । 'गोयमा ! हे गौतम ! 'तेणं मणुया' ३४ द्वीपना त मनुष्य। 'अणुवमतर सोमचारुरूवा' यंद्रनी भ qधारे सुं४२ ३५वाणा हाय छे. 'भोगुत्तमगयलक्खणा' ते मनुष्य उत्तम उत्तम लगाना साहायछ. 'भोगसस्सिरीया' सोशलन्य श्री नाम शामाथी युताय छे. 'सुजायसव्वंगसुंदरंगा' शरी२ना प्रभाए अनुसार प्रमाण युत મસ્તક વિગેરે તેઓનું અંગ જન્મથી જ અત્યંત સુંદર હોવાથી તેમનું શરીર सुंदर आय छे. 'सुपइद्विय कुम्म चारू चलणा' सुंदर मा२वा तथा आयम। न पांस उन्नत या हाय छ. रितुप्पलपत्तम उयसुकुमालकोमल જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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