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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.३७ एकोरुकद्वीपस्थानामाकारभावादिकम् ५७१ कोमलतलाः तत्र-रक्तोत्पलपत्रवत् लालिसायुक्तं पुनश्च मृदुकं मार्दवगुणोपेतम् अकर्कशम् अत एव सुकुमारं कोमलं तलं चरणतलं येषां ते तथा, नगनगर सागर मगर चक्कं-कधरंकलक्खणकिय चलणा' नगनगरसागरमकरचक्राङ्कधराङ्कलक्षणाकितचरणाः, तत्र नगो-गिरि नगर सागर मकर चक्राणि प्रसिद्धानि, अङ्कधरश्च. न्द्रस्तस्याङ्को लांछनम् एवं रूपैर्लक्षणैरुक्तवस्त्वाकार परिणताभिः रेखाभिरङ्किते चरणे येषां ते तथा, 'अणुपुत्वसुसाहतंगुलीया' आनुपूर्य सुसंहताङ्गुलीयाः, आनुपूपेण-परिपाटयावर्द्धमाना होयमानाः सुसंहता:-अविरलाः अंगुलया पादाग्रावयवा येषां ते तथा, 'उण्णयतणु तंबणिद्धणखा' उन्नततनु ताम्रस्निग्धनखाः, तत्र उन्नता मध्ये तुंगाः तनवः-प्रतलाः ताम्रा रक्तवर्णाः स्निग्धाः-स्निग्धकान्तिमन्तः नखा:-पादगता येषां ते तथा, 'संठियसुसिलिट्ठगुप्फा' संस्थितसुश्लिष्टः 'रतुप्पल पत्तमउय सुकुमाल कोमलतला' इनका चरण तल रक्त-लाल होता है एवं उत्पल के पत्र के जैसा वह मार्दव गुण से युक्त रहता हैकठोर नहीं होता तथा शिरीष पुष्प के जैसा वह कोमल होता है 'नगनगर सागर मगर चक्कंकघरंकलक्खणंकियचलणा' इन के चरणों में पहाड़ नगर सागर समुद्र मकर-मगर, चक्र एवं अधर चन्द्रमा इनके चिह्न, रहते है अर्थात् इन आकार की उनके चरणों में रेखाएं होती है 'अणुपुत्वसुसाहयंगुलिया' इनके पैरों की अंगुलियां जैसी जहां प्रमाण में बडी और छोटो होनी चाहिये वैसी वह वहां संहत-मिली हुई होती है 'उण्णयतणु तंबणिद्धणखा' इनके पैरों की अंगुलियों के नख उन्नत ऊंचे उठे हुए पतले, ताम्र-लालवर्ण के-और स्निग्ध-स्निग्ध कान्ति शाली होते है । 'संठिय सुसिलिट्ठ गुप्फा' इनके तला' तन। य२र्नु तणीयु. माल हाय छे. भने ५८ हेतi भजना પાનના જેવા મૃદુતા ગુણવાળા હોય છે. અર્થાત્ કઠોર હોતા નથી. તથા शिरीषन ०५ना २१ त म हाय छे. 'नगनगरसागर मगर चक्क कधरं कलक्खणकियचलणा' तमन २२ मा ५९, नगर, सागर, સમુદ્ર, મકર-મધર, ચક, અને અંકધર-ચંદ્રમાં એઓના ચિહને હોય છે. मर्थात् 21 माजरानी माया तमाना २२मा हाय छे. 'अणुपुव्वससाह यंगुलिया' तमना पानी मागीय प्रमाण सरनी मेटले नानी મેટી જ્યાં જે પ્રમાણની હોવી જોઈએ તેવીજ ત્યાં ત્યાં મળેલી રહે છે, 'उण्णयतणु तंबणिद्धणखा' तमना पानी मागणीयाना न Gad 2 ઉઠેલા પાતળા, લાલવર્ણ વાળા અને સિનગ્ધ, ચિકાશ યુક્ત કાંતીવાળા હોય છે. 'संठियसुसिलिगुप्फा' माना गुप (मेडी ५२नी 8) प्रभात જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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