________________
प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.२सू.१८ नारकजीवानां संहनननिरूपणम्
__२५१ _ 'इमीसे ण भंते ! रयणप्पभाए पुढवीएं' एतस्यां खलु भदन्त । रत्नप्रभा पृथिव्याम् 'नेरइयाणं सरीरया' नैरयिकाणां शरीराणि केरिसया फासेणं पन्नत्ता' कीदृशानि स्पर्शेन प्रज्ञप्तानि, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'फुडियच्छविविच्छवया' स्फुटितच्छवि विच्छवयः' प्रथमच्छवि शब्दस्त्वगूवाची द्वितीयश्च्छायावाची, तथा च स्फुटितया राजिशतसंकुलया त्वचा विच्छवयो विगतच्छाया इति स्फुटितच्छविविच्छवयः । 'खरफरुसझामझुसिरा' खरपरुषमाम शुषिराणि खराणि अतएव अतिशयेन परुषाणि ध्मामानि दग्धच्छायानि शुषिराणि-शुषिरशत कलितानि ततः पदद्वयस्य पदद्वयेन विशेषणसमासः सुपक्वे. ___ तथा इसी प्रकार की अनिष्टतर आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाली दुर्गन्ध द्वितीय पृथिवी के नैरपिको से लेकर अधःसप्तमी पृथिवी के नारकों के शरीर से आती है ऐसा जानना चाहिये. ____ 'इमीसे गंभंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया केरिसया फासेणं पण्णत्ता' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी के नैरयिको के शरीर स्पर्श से कैसे होते हैं ? अर्थात् प्रथम पृथिवी नैरयिको के शरीर का स्पर्श कैसा होता हैं ! उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! फुडिच्छवि विच्छवया' हे गौतम ! प्रथम पृथिवी के नैरयिको के शरीर जिसकी त्वचा के ऊपर सैकड़ों झुर्रियां पड़ रही है और इसी से जो छायाकान्ति से रहित हो रहा है. तथा-'खरफरुस' जिसका स्पर्श परुष कठोर है सैकड़ों जिसमे छेद हो रहे हैं और जिसकी छाया-कान्ति जली हुई वस्तु की जैसी है-इस प्रकार के स्पर्श-कठोर स्पर्श वाले होते हैं ।
તથા આવાજ પ્રકારની અનિષ્ટતર વિગેરે પૂર્વોક્ત વિશેષણે વાળી દુર્ગધ બીજી પૃથ્વીને નૈરયિકોથી લઈને અધસપ્તમી પૃથ્વીના નાકજીના શરીરમાંથી આવે છે. તેમ સમજવું,
'इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया णं सरीरया केरिसया फासेण पण्णता' है लगवन् मा २त्नपा पृथ्वीना नै२यिहाना शरी॥२५शया કેવા હોય છે ? અર્થાત પહેલી પૃથ્વીના નૈરયિકેના શરીરનો સ્પર્શ કેવો હોય છે?
। प्रशन उत्तरमा प्रभु गौतभस्वामीन ४९ छ है 'गोयमा ! फुडिय च्छविविच्छविया' हे गौतम ! पडेली पृथ्वीना नै२थि छाना शरीश रेशानी ચામડી ઉપર સેંકડે ઝરિયા-ઉઝરડાં કરચલી પડેલી હોય અને તેથી જ જેઓ
तिविनाना डाय छ, तथा 'सर फरूस' रेन। २५५३५ ठार छ. मनरेभा સેંકડો છેદ થઈ રહ્યા હોય છે, અને જેની છાયા-કાંતિ બળેલી વસ્તુના જેવી હોય
જીવાભિગમસૂત્ર