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जीवाभिगमसूत्रे
ष्टका संतप्त मामतुल्यानि इति भावः 'फासेणं पत्नत्ता' स्पर्शेन प्रज्ञप्तानि ' एवं जाव अहे सत्ताए' एवं यावदधः सप्तम्याम् रत्नप्रभाव देव शर्कराप्रभात आरभ्य तमस्तम पर्यन्त नारकाणां शरीराणि पूर्ववदेव स्पर्शेन ज्ञातव्यानीतिभावः ॥ १८ ॥ सम्प्रति-नारकाणामुच्छ्वासादि प्रतिपादनार्थमाह- 'इमीसे ण ं भंते । रयणप्प
भा' इत्यादि,
मूलम् - इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केरिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति ? गोयमा ! जे पोग्गला अणिट्टा जाव अमणामा ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति, एवं जाव अहे सत्तमाए एवं आहारस्स वि सत्तसु वि । इमीसे णं रयणप्पभाष पुढवीए नेरइयाणं कइ लेस्साओ पन्नताओ ? गोयमा ! एक्का काउलेस्सा पन्नत्ता । एवं सक्करप्पभाए वि । वालुयप्पभाए पुच्छा, गोयमा ! दो लेस्साओ पन्नताओ, तं जहा - नीललेस्सा कापोयलेस्सा य, तत्थ जे कापोयलेस्सा ते बहुतरा जे नीललेस्सा ते थोवा | पंकप्पभाए पुच्छा, एक्का नीललेस्सा पन्नत्ता । धूमप्पभाए पुच्छा गोयमा ! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ तं जहा - किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य ते बहुतरगा जे नीललेस्सा ते थोवतरगा जे कण्हलेस्सा । तमाए पुच्छा, गोयमा ! एक्का कण्हलेस्सा, अहे सत्तमाए एक्का परम कण्हलेस्सा ॥ इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं सम्मद्दिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठी
' एवं जाव अहे सत्तमाए' इसी तरह के कठोर स्पर्श वाले द्वितीय पृथिवी से लेकर अधः सप्तमी पृथिवी तक के नारकों के शरीर हैं ऐसा जानना चाहिये ॥ ॥ सूत्र ॥ १८ ॥
छे, भावा प्राश्ना स्पर्शवाणा अर्थात् उठोर स्पर्शवाणा होय छे. ' एवं ' जाव अहे सत्तमाएँ' भाषा प्रहारना उठोर स्पर्श वाणा जी पृथ्वी थी सर्धने अधः सप्तभी પૃથ્વી સુધીના નારકાના શરીરા હેાય છે. તેમ સમજવું. ॥ સૂ. ૧૮ ૫
જીવાભિગમસૂત્ર