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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.२सू.१८ नारकजीवानां संहनननिरूपणम् ___२४९ सम्मति-नारकाणां शरीरेषु वर्णप्रतिपादनार्थमाह-'इमीसे गं' इत्यादि, 'इमीसे णं भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नपभायां पृथिव्याम् 'नेरइयाणं' नैरयिकाणाम् 'सरीरया केरिसया वण्णेणं पन्नत्ता' शरीराणि कीदृशानि वर्णेन प्रज्ञप्तानि-कथितानीति प्रश्नः भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'कालाकालोभासा जाव परमकिण्हा वण्णेणं पन्नत्ता' कालानि कालावभासानि यावत् गम्भीरलोमहर्षाणि भीमानि उत्रासनकानि परमकृष्णानि नारकाणां शरीराणि वर्णेन प्रज्ञप्तानि एवं जाव अहे सत्तमाएं' एवं यावदधः सप्त प्रभा पृथिवी के नारकों के भी दोनों प्रकार के शरीर हुण्डक संस्थान वाले होते हैं- ऐसा जानना चाहिये. अब नारकों के शरीर के वर्ण कैसे होते हैं-इसका कथन सूत्रकार करते हैं इसमें गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी के नरकावासों के 'नेरइयाणं सरीरा केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता' नेरयिकों के शरीर वर्ण से कैसे होते हैं-अर्थात् कैसे वर्ण वाले होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! काला, कालोभासा, जाव परमकिण्हा वण्णेणं पन्नत्ता' हे गौतम! प्रथम पृथिवी के नरकावासों के नारकजीवों के शरीर वर्ण की अपेक्षा काले कृष्णप्रभा वाले देखते ही शरीर में रोगटे खड़े कर देने वाले, भयजनक और परम कृष्ण होते हैं । 'एवं जाव अहे सत्तमाए' इसी શરીરે હુંડક સંસ્થાનવાળા હોય છે. તેમ સમજી લેવું હવે નારકોના શરીરને વર્ણ કે હેય છે? એ સંબંધમાં સૂત્રકાર थन रे छे. मा संघमा गौतभाभी से प्रभुने मे पूछ्यु छ ? 'इमीसेण भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए' है लगवन् २२त्नप्रभा पृथ्वीना नपासोमा हेवावाणा 'नेरइया ण सरीरा केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता' नैरथिना शरी। पाप વાળા હોય છે? એટલે કે તેના શરીરને વર્ણ કેહોય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु ४३ छ है 'गोयमा ! काला कालोभासा, जाव परमकिण्हा वण्णे णं पण्णत्ता' हे गौतम ! पहेली पृथ्वीना न२४पासोमा हेवावा ना२४ । ના શરીરને વર્ણ કાળો, કાળી કાંતી વાળે કે જેને જેવાથી જ શરીરના રૂંવાડા ઉભા થઈ જાય એવા અને ભયકારક અત્યંત કૃષ્ણ કાળા હોય છે. 'एवं जाव अहे सत्तमाए' मा प्रमाणे मी पृथ्वीथी सन अधःसभी जी० ३२ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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