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________________ ammam ४७८ जीवाभिगमसूत्रे अथ मनुष्यपुरुषप्रकरणमाह- ‘मणुस्सपुरिसा णं भंते' इत्यादि, 'मणुस्सपुरिसा णं भंते ? मनुष्यपुरुषाः खलु भदन्त ! 'कालओ केवच्चिरं होंति' कालतः कियच्चिरं भवन्ति मनुष्यपुरुषास्तादृशपुरुषत्वमपरित्यजन्तः कियत्कालपर्यन्तमवतिष्ठन्ते इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुतं' क्षेत्रं प्रतीत्य क्षेत्राश्रयणेन जधन्येनान्तमुहूर्त यावदवतिष्ठन्ते, 'उक्कोसेणं तिन्नि पलियोवमाइं पुवकोडि पुहत्तमभहियाई उत्कर्षत स्त्रीणि पल्योपमानि पूर्वकोटिपृथक्त्वाभ्यधिकानि 'धम्मचरण पडुच्च जहन्नेणं अतोमुहत्तं' धर्मचरणं-चारित्रधर्म प्रतीत्य जधन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं देसूणा पुव्यकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिः । ‘एवं सव्वत्थ' एवं यथा सामान्यतो मनुष्यपुरुषाणामवस्थानं कथितं तथैव सर्वत्र सर्व पुरुषाणामपि अवस्थानं ज्ञातव्यम् तत्राह --'जाव' इत्यादि, 'जाव पुव्व भाग की स्थितीवाले अन्तर द्वीप आदि के खेचर पुरुषों में उत्पन्न होता हैं उस की अपेक्षा से जानना चाहिये । तिर्यग्योनि प्रकरण समाप्त, "मणुस्स पुरिसा णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होति” हे भदन्त ! मनुष्य पुरुषों की कायस्थिति का काल कितना है । उत्तर में प्रभु कहते हैं- “गोयमा खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अतोमुहूत उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई पुवकोडिपुहुत्तमब्भहियाई" हे गौतम ! मनुष्य पुरुषोंकी कायस्थिति का काल जधन्य से तो एक अन्तर्मुहूर्त का हैं और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम का है। "धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं "चारित्र धर्म की अपेक्षा करके इसकी कायस्थिति काल जघन्य से तो एक अन्तमुहूर्त का और 'उक्कोसेणं'उत्कृष्ट से "देसूणा पुचकोडी" देशोन पूर्वकोटि का है, "एवं सव्वत्थ" इस प्रकार से जैसा यह सामान्य रूप से मनुष्य पुरुषों का अवस्थान काल- कायस्थिति का काल कहा है वैसाही सर्वत्र सब पुरुषों की भी कायस्थितिका काल जानना चाहिए પલ્ય પમના અસંખ્યાતમા ભાગની સ્થિતિવાળા અંતરદ્વીપ વિગેરેના ખેચર પુરૂષમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તે અપેક્ષાએ સમજવું. આ રીતે તિર્યનિક પ્રકરણ સમાસ. ___'मणुस्सपुरिसा णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होंति" हे भगवन् मनुष्य ५३षानी राय સ્થિતિને કાળ કેટલે કહેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે"गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अतोमुहुतं उक्कोसेण तिन्नि पलिओवमाइं पुचकोडि पुहुतमब्भहियाई" हे गौतम मनुष्य ५३षानी यस्थिति। 10 धन्यथी मे मतभुइतना छ भने अटथी पू' पृथत्व अधिa पक्ष्या५मा छ. "धम्मचरणं पहुच जहपणेणं अंतोमुहुत्त" यानि धमनी मपेक्षाथी तेमानी आयस्थिति धन्यथा में मतभुइतना 'उक्कोसेणं' मने थी "देसूणा पुवकोडी" शानपूटिन छे. "एवं सम्वत्थामा शव रीते 24। सामान्य ५॥थी मनुष्य ५३वानो अवस्थान अज-यो કે-કાયસ્થિતિને કાળ કહ્યો છે. એ જ પ્રમાણે બધેજ પુરૂષોને કાયસ્થિતિને કાળ સમજી લે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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