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________________ ३८८ जीवाभिगमसूत्रे पडुच्च' जन्म प्रतीत्य-अकर्मभूमिजन्माश्रयणेन 'जहन्नेणं देसूर्ण पलिओवम' जधन्यतो देशोनं पल्योपमम्-तच्चाष्टभागादन्यूनमपि देशोनं भवति, ततो विशेषख्यापनायाह-'पलिओवमस्स असं. खेज्जइ भागऊणगं' पल्योपमस्यासंख्येयभागेनोनम् एतच्च हैमवतहैरण्यवतक्षेत्रापेक्षया द्रष्टव्यम्; तत्र जघन्यतः स्थिते रेतावत्प्रमाणायाः संभवात् । 'उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई उत्कर्षत स्त्रीणि पल्योपमानि स्थितिर्भवतीति, एषा त्रिपल्योपमप्रमाणा स्थिति देवकुरूचरकुरुक्षेत्रापेक्षया ज्ञातव्येति 'संहरणं पडुच्च' संहरणं प्रतीत्य, संहरणं नाम कर्मभूमिजाया स्त्रियोऽकर्मभूमिषु नयनं तत्प्रतीत्य तदाश्रित्य 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं देसूणा काल की कही गई है "गोयमा जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं देखणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग ऊणगं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं" हे गौतम ! अकर्म भूमिक मनुष्य स्त्रियों की स्थिति जन्म की अपेक्षा लेकर के जघन्य से देश ऊन कुछ कम एक पल्योपम की कही गई है, पल्योपम में देशोनता तो आठवें भाग आदि से न्यून होने पर भी आजाती है परन्तु ऐसी ऊनता यहां विवक्षित नहीं हुई है इसी बात को प्रकट करने के लिये कहते हैं-"पलिओवमस्स असंखेज्जइभागऊणगं" वह ऊनता यहां पल्योपम के असंख्यातवें भाग रूप समझना चाहिये, यह कथन हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र की अपेक्षा से जानना चाहिये । क्योंकि यहां पर इतने ही प्रमाण की जघन्य स्थिति का संभव है। "उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं ' तथा अकर्मभूमिक मनुष्य स्त्रियों की स्थिति उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की कहीं गई है। यह स्थिति देवकुरू और उत्तरकुरु क्षेत्र की अपेक्षा से कही गई जाननी चाहिये । “संहरणं पडुच्च' संहरण-कर्मभूमिकी स्त्री को हरकर अकर्म भूमिमें लेजाने की अपेक्षा अकर्म भूमिक मनुष्य स्त्रियोंकी भवस्थिति "जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं" जघन्य "गोयमा ! जम्मणं पडुच्च देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागऊणगं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई" गीतम! भभभूमि भनुष्य सियोनी स्थिति नभनी અપેક્ષાએ જઘન્યથી દેશ ઉન-કંઈક ઓછી એક પલ્યોપમની કહેલ છે. પલ્યોપમમાં દેશોનપણું તે આઠમા ભાગ આદિથી ન્યૂન થાય ત્યારે પણ આવી જાય છે. પરંતુ એવું ન્યૂન પણું महियां विवक्षित थये नथी. मे पात ने प्रशस ४२१॥ माटे छे -“पलिओवमस्स असंखेज्जइभागऊणगं" ते न्यून पामडिया पक्ष्या५मना मसभ्यात भमागરૂપ સમજવું. આ કથન હેમવત અને હૈરવત ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી સમજવું. કેમકે–અહિયાં सेटमा प्रमाणुनी ४ धन्य स्थितिने समय छे. "उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं, तथा અકર્મ ભૂમિક મનુષ્ય સ્ત્રિની સ્થિતિ ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યોપમની કહી છે. આ સ્થિતિ १३ भने उत्त२७३ क्षेत्रनी अपेक्षाथी ४ . तमसमा 'संहरणं पडुच्च' सह२६४કર્મભૂમિની સ્ત્રીને હરીને અકર્મભૂમિમાં લઈ જવાની–અપેક્ષાથી અકર્મભૂમિ જ મનુષ્ય लियोनी मपस्थिति "जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं" धन्यथा तो मे मत इतनी छ, भने જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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