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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ स्त्रीणां भवस्थितिमाननिरूपणम् ३७९ पलिओवमाइं' उत्कर्षेण सप्त पल्योपमानि, एतत् सौधर्मकल्पपरिगृहीतदेवीरधिकृत्य कथितमिति । तथा 'एगेणं आदेसेणं जहन्नेणं अंतो मुहुत्त' एकेनादेशेन-एकेन प्रकारेण जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् , 'उक्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाई' उत्कर्षेण पञ्चाशत् पल्योपमानि, एतत्तु सौधर्मकल्पाऽपरिगृहीतदेव्यपेक्षया कथितमिति । तदुक्तम् - सपरिग्गहेयराण सोहम्मीसाण पलिय-साहीयं । उक्कोससत्तपन्ना नवपणपन्ना य देवीणं ॥१॥ सपरिग्रहेतराणां सौधर्मशानानां पल्योपमं साधिकम् । उत्कृष्टतः सप्तपञ्चाशन्नव पञ्चपञ्चाशच्च पल्योपमानि देवीनामिति ॥ एवम्-उक्तप्रकारेण समुच्चयतः स्त्रीणां जघन्यत उत्कर्षतश्च स्थितिमानं कथितम् सम्प्रति तिर्यक् रुयादि भेदानाश्रित्य स्थितिमानं कथियितुं प्रश्नयन्नाह-'तिरिक्खजोणित्थीणं सत्त पलिओवमाई” एक तीसरे प्रकार की अपेक्षा से स्त्रियों की भवस्थिति जधन्य से तो अन्तर्मुहूर्त की है-और उत्कृष्ट से सात पल्योपम की हैं। यह सौधर्मकल्प में परिगृहीत देवियों की अपेक्षा से कथन किया गया हैं "एगेणं आदेसेणं जहन्नेणं अंतो मुहत्तं उक्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाई" तथा-एक चतुर्थ प्रकार की अपेक्षा से जधन्य स्थिति तो स्त्रियों कि एकअन्तर्मुहूर्त की हैं और उत्कृष्ट स्थिति पचास पल्योपम की हैं यह कथन सौधर्मकल्प में अपरिगृहीत देवियों की अपेक्षा से किया गया है। तदुक्तम् -''सपरिग्गहेयराणं सोहम्मीसाण पलियसाहीयं । उक्कोससत्तपन्ना नव पणपन्ना य देवीणं” पूर्वोक्त जो उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर कहा गया है उसी के सम्बन्ध में यह गाथा प्रकाश डालने के लिये कही गई है इस प्रकार सामान्यतः स्त्रियों की जघन्य और उत्कृष्ट से भवस्थिति का प्रमाण कहकर अब सूत्रकार तिर्यस्त्री आदि के भेद को आश्रित कर सेणं सत्त पलिओवमाइ” त्रील प्रा२नी अपेक्षाथी स्त्रियोनी भय स्थिति न्य થીતે અંતર્મુહૂતની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત પલ્યોપમની છે. આ કથન સૌધર્મ ક૬૫માં परिगृहीत-२स वायोनी अपेक्षाथी ४२वामां मावेस छ. “एगेणं आदेसेणं जहन्नेणं अतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाई" तथा मे याथा प्रा२नी अपेक्षाथी धन्य સ્થિતિ તો સ્ત્રિની એક અન્તર્મુહુર્તની છે, અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ પચાસ પલ્યોપમની છે. આ કથન સૌધર્મ કલપમાં અપરિગૃહીત દેવિયેની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવેલ છે. तदुक्तम् "सपरिग्गहेयराणं सोहम्मीसाण पलियसाहियं उक्कोससत्तपन्ना नवपणपण्णा य देवीणं" पूति हट स्थितिमा भत२ ४उवामां मावस छ, तेना संघमा પ્રકાશ કરવા માટે આ ગાથા કહેવામાં આવેલ છે. આ રીતે સામાન્યતઃ ત્રિની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી ભવસ્થિતિનું પ્રમાણુ કહીને હવે સૂત્રકાર તિર્યશ્વી વિગેરેના ભેદનો આશ્રય કરીને मपस्थितिनु प्रमाण ४९ छे-मामी गौतम स्वामी प्रभुने छयु छ :-तिरिक्खजोणि જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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