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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० कान्तिकस्थलचर जीवनिरूपणम् ३०१ अवगाहनाद्वारमाह-'ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइभागं' गर्भजभुजपरिसर्पजीवानां शरीरावगाहना जघन्येनांगुला संख्येयभागप्रमाणा भवतीति । 'उक्को सेणं गाउयपुहत्तं' उत्कर्षेण शरीरावगाहनागब्यूत पृथक्त्वं द्विगम्यूतादारभ्य नवगब्यूतपर्यन्तं भवतीति अवगाहनाद्वारम् || स्थितिद्वारमाह - 'ठिई जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं' स्थितिः - आयुष्यकालो भुजपरिसर्पाणां जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं पुव्वकोडी' उत्कर्षेण पूर्वकोटिप्रमाणा स्थितिर्भवतीतिस्थितिद्वारम् । शरीरशरीरावगाहना स्थितिद्वारातिरिक्तद्वारेषु गर्भजभुजपरिसर्पाणां गर्भजोरः परिसर्पवदेव ज्ञातव्यमित्याशयेनाह - ' सेसेसु' इत्यादि, 'सेसेसु ठाणेसु जहा उरपरिसप्पा' शेषेषु - शरीरशरीरावगाहना स्थितिद्वारातिरित स्थानेषु गत्यागतिपर्यन्तेषु यथोरः परिसर्पाः येन प्रकारेणोर :परिसर्पाणामेतानि द्वाराणि कथितानि तथैव भुजपरिसर्पाणामपि तानि द्वाराणि ज्ञातव्यानीति ॥ केवलं भुनपरिसर्पाणाम् उरः परिसर्पापेक्षया यद् उद्वर्त्तनाद्वारे वैलक्षण्यं भवति तत् स्वयमेव दर्शयति- 'नवरं' इत्यादि, 'णवरं दोच्च पुढविं गच्छति' नवरं गर्भजभुजपरिसर्पा इत तैजस शरीर और कार्मण शरीर अवगाहनाद्वार में इनकी "ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइभागं " शरीरावगाहना जघन्य से तो अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है और उत्कृष्ट से " गाउय पुहत्तं " गव्यूत पृथक्त्व होती है-दो कोश से लेकर नौ कोश तक की होती है। स्थितिद्वार में इनकी स्थिति “जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं" जधन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की होती है और " उक्को सेणं पुच्वकोडी” उत्कृष्ट से एक पूर्व कोटिकी होती है । 'सेसेसु ठाणेसु जहा उरपरिसप्पा' इस प्रकार शरीर, शरीरावगाहना एवं स्थिति, इन द्वारों के सिवाय सब द्वारों का कथन जैसा गर्भन उरः परिसर्प के प्रकरण में किया गया हैं - वैसा ही यहाँ पर भी इन गर्भज भुज परिसर्पों के सम्बन्ध में कर लेना चाहिये उरः परिसर्पो की अपेक्षा जो इन भुज परिसर्पों के उद्वर्तना (निकलना) द्वार में भिन्नता है वह इस प्रकार "नवरं दोच्चं पुढविं गच्छंति" भुजपरिसर्प अपनी अवगाहनाद्वारभां—“ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलासंखेज्जइभागं" तेखाना शरीरनी भवगाहना धन्यथी खे! आगणनां असभ्यातमा लागनी होय छे, मने उत्ष्टथी “गाउयपुहुत्तं गव्यूत पृथत्वनी होय छे भेटते हैं मे गव्यूतिथी बहने नव गव्यूत सुधीनी होय छे. स्थितिद्वारमां तेयोनी स्थिति 'जहन्नेणं अतो मुहुत्तं" धन्यथी अतर्मुहूर्त नी होय छे, भने “उक्कोसेणं पुव्वकोडी” उत्सृष्टथी से पूर्व अटीनी होय छे. "सेसेसु ठाणे जहा उरपरिसप्पा" भी रीते शरीर, शरीरावगाहना भने स्थिति या द्वारोना કથન શિવાય બધા જ દ્વારાનુ કથન અહિયાં જે રીતે ગજ ઉર:પરિસપ ના પ્રકરણમાં કરવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણે અહિયાં પણ-આ ગભ`જ ભુજપરિસપેર્યાંના સંબધમાં સમજી લેવુ’ ઉર:પરિસર્યાં કરતાં આ ભુજપરિસના ઉદ્દનાદ્વારના કથનમાં જે જુદાઈ छे, ते या अमानी छे. "नवरं दोच्चं पुढवि गच्छति" लुटपरियों न्यारे पोतानी पर्याय જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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