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________________ ३०० __ जीवाभिगमसूत्रे असंखेज्जा पन्नत्ता' प्रत्येकशरीरिण इमेऽसंख्याताः प्रज्ञप्ताः -कथिता इति । सम्प्रति गर्भजस्थलचरोरःपरिसर्पप्रकरणमुपसंहन्नाह-- 'से तं उरपरिसप्पा' ते एते गर्भघ्युत्क्रान्तिकोर:परिसर्पाः लक्षणभेदाभ्यां निरूपिता इति भावः ॥ ऊरःपरिसर्पान् निरूप्य भूजपरिसर्पान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह-'से किं तं' इत्यादि, 'से किं तं भूयपरिसप्पा' अथ के ते भुजपरिसर्पाः भुजाभ्यां परिसर्पणशीला ये ते भुजपरि सर्पास्ते कियन्तः ? इति प्रश्नः, ऊत्तरयति-संमूछिमभुजसतिदेशेन - 'भेदो तहेव' इति, भेदस्तथैव यथा संमूछिमभुजपरिसर्पाणां भेदः कथित स्तैनैव रूपेण गर्भजस्थलचरभुजपरिसर्पाणामपि भेदो ज्ञातव्य इति, ॥ सम्प्रति- भुजपरिसर्पाणां शरीरादिद्वाराणि दर्शयति-'चत्तारि' इत्यादि, तत्र प्रथमतः प्रथमं शरीरद्वारमाह-'चत्तारि सरीरगा' चत्वारि शरीराणि गर्भजस्थलचरभुजपरिसर्पाणां चत्वारि औदारिकवैक्रियतैजसकार्मणशरीराणि भवन्तीति शरीरद्वारम् ॥ इसी प्रकार से चारों गतियों के जीव यहां आ सकते हैं । “परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता" यहाँ प्रत्येक शरीरी असंख्यात कहे गये हैं। "से तं उरपरिसप्पा" इस प्रकार से यहां तक का यह प्रकरण गर्भज उरःपरिसों का निरूपित हुआ है। उरः परिसो का निरूपण करके अब सूत्रकार भुजपरिसों की प्ररूपणा करते हैं इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है “से किं तं भुयपरिसप्पा" हे भदन्त ! भुजपरिसो का क्या लक्षण है और कितने इनके भेद हैं ? उत्तर में स्त्रकार कहते हैं-"भेदो तहेव" जिस रूप से संमूच्छिम भुजपरिसी का भेद कहा है उसी रूप से गर्भजस्थलचर भुजपरिसों का भी भेद जानलेना चाहिये। अब भुजपरिसों के शरीरादि द्वारों का निरूपण किया जाता है "चत्तारि सरीरगा" इन भुजपरिसों के शरीरद्वार में चार शरीर होते कहे गये हैं- औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, "परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता" मा प्रत्ये मस ज्यात शरीरवाणा उडमा छ. से तं उर परिसप्पा" । रीते महसुधीनुमा ४थन ४ ३२: परिसना समयमा ४ छे. ઉરઃ પરિસર્પોનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર ભુજ પરિસર્પોનું નિરૂપણ કરે છે. આ सुपरिसपाना सभा गौतभस्वामी प्रभुने पूछे छे -"से किं तं भुयपरिसप्पा" ભગવદ્ ભુજપરિસર્પોનું શું લક્ષણ છે ? અને તેના કેટલા ભેદે છે? આ પ્રશ્નના उत्तम प्रभु गौतमस्वामीने ४९ छ , “भेदो तहेव" रे प्रमाणे स भूमि सुपरસર્પોના ભેદોનું કથન કર્યું છે, એજ પ્રમાણે ગર્ભજ સ્થલચર ભુજ પરિસર્પોનું કથન પણ सम से. वे मुगपरिसपैनिशरी२ विगेरे द्वारा नि३५ ४२वामां आवे छे.-"चत्तारि सरीरगा" २ सुपरिसाना शरी२६ारमा तम्मान या२ शरी। हाय छे. ते मा प्रभारी સમજવા. ઔદારિક શરીર ૧, વૈકિય શરીર ૨, તેજસ શરીર ૩, અને કામણ શરીર ૪ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006343
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages656
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size37 MB
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