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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे स्थिराग्रहस्तः प्रतिपूर्णपाणिपादपृष्टान्तरोरुपरिणतः घननिचितवृत्तवलित स्कन्धः चर्मेष्टकद्रुघणमुष्टिकसमाहतगात्रः उरस्यबलसमन्वागतः तलयमलयुगलपरिघनिभबाहुः लङ्घनप्लवनजवनप्रमर्दनसमर्थः छेकः दक्षः प्रष्ठः कुशलः मेधावी निपुणशिल्पोपगतः एकं महान्तं शलाकाहस्तकं वा दण्डसंप्रोच्छनी वा, वेणुशलाकिनी वा गृहीत्वा राजाङ्गणं वा राजान्तः पुरं वा देवन्पन्न हो, बलशाली हो, अल्पातङ्क-रोगरहित हो, स्थिरसंहननवाला हो, स्थिर अग्रहस्तवाला हो, (पडिपुण्णपाणिपायपिट्ठतरोरुपरिणए ) जिसके परिपूर्ण सुपुष्ट पाणिपाद ( हाथ पग) पृष्ठान्तर एवं उरु वृद्धिप्राप्त हो ( घणनिचियवट्टवलियखंधे ) अतिशय निचित-निबिडतर चयको प्राप्त-तथा मांसलजिसके दोनों गोल २ कन्धे हों, (चम्मट्टगदुषणमुट्ठियसमाहयगए ) चमष्टक, द्रघण एवं मुष्टि इनके प्रहारों से मल्ल की तरह जिसका गात्र विशेषपरिपुष्ट हो. ( उरस्सबलसमन्नागए ) वक्षो बल से जो समन्वित हो, ( तलजमल जुयलफलिहनिभवाहू ) जिसके दोनों बाहू, युगपत् उत्पन्न दो तालवृक्षों के और अर्गला के जैसे अतिसरल, दीर्घ और पीवर-(पुष्ट) हों ( लंघणपवणजवणपमद्दणसमत्थे) लांघने में, कूदने में, अतिशीघ्रगमनकरने में और प्रमर्दन-किसी वस्तु को चूर २ करने में जो समर्थ हो ( छए, दक्खे, पट्टे, कुसले, मेहावी, निउणसिप्पोवगए) छेक हो, दक्ष हो, प्रष्ठ हो, कुशल हो, मेधाजी हो, एवं निपुणशिल्पोपगत हो ( एग महं सलागाहस्थगं वा, दंडसंपुच्छणि वा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायंतेपुरं वा) ત્પન્ન-હોય, બળવાન હોય, અપાત-રોગરહિત હોય, સ્થિર સંહના વાળ હોય स्थि२ सस्तवाण ।य, (पडिपुण्णपाणिपायपिटुंतरोरुपरिणए ) ना बा ५५ स पूर्णशत सुपुष्ट-पृष्ठांत२ भने २-वृद्धि प्राप्त है।य. ( घणनिचियवट्टवलियखंधे ) अतीव निथित-निमित२ यय प्राप्त तम पुष्ट नमन मला य. (चम्मेदृग दुघणमुट्ठियसमाहयगए ) मष्ट द्रुध भने भुष्टि भेना प्रहारथी महनी म रेना विशेष परिपुष्ट छाय, ( उरस्सबलसमन्नागए ) पक्ष-(छाती) माथी २ समन्वित ।य, (तलजमलजुयलफलिहनिभबाहू ) नमन. पाहुम्मा साथे ઉત્પન્ન થયેલા બે તાલવૃક્ષે અને અગલા જેવા અતિસરલ, દીર્ઘ અને પીવર (પુષ્ટ) डाय, (लंघणपवणजवणपमद्दणसमत्थे ) योगामामा, अतिशी गमनमा भने प्रमहन-४५ वस्तुना भूछ। ४२वामा समथ डेय, (छेए, दक्खे, पदे, कुसले, मेहावी निउणसिप्पोवगए ) ४ ।य, ४क्ष डाय, प्र४ ।य, सुशण डेय, मेधावी य मने निपुण शिपायात लेय, (एगंमहं सलागाहत्थगं वा, दंडसंपुच्छणि वा वेणुसलाइयं वा गहाय रायंगणं वा रायतेपुरं वा) શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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