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सुबोधिनी टीका. देवकृतं समवसरण भूमिसंमार्जनादिकम वैक्रियसमुद्घातेन समवघ्नन्ति, समवहत्य संख्येयानि योजनानि दण्डं निसृजन्ति, तद्यथा-रत्नानां यावत् रिष्टानां यथावादरान् पुद्गलान् परिशातयन्ति, परिशात्य यथा सूक्ष्मपुद्गलान् पर्याददते, पर्यादाय द्वितीयमपि वैक्रियसमुद्घातेन समवघ्नन्ति, समवहत्य संवर्तकवातान् विकुर्वन्ति, स यधानामकः भृतिकदारकः स्यात् तरुणः युगवान् बलवान् अल्पाऽऽतङ्कः स्थिरसंहननः थिमं दिसीभागं अवकमंति) वन्दना नमस्कार करके फिर वे ईशान कोन में चले गये. ( अवकमित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति ) वहां जाकर उन्होंने वैक्रिय समुद्घात किया. ( समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिरंति ) वैक्रिय समुद्घात करके फिर उन्होंने संख्यात योजन प्रमाण दण्ड को निकाला अर्थात् संख्यात योजन प्रमाण दण्डरूप में करके अपने आत्मा के प्रदेशों को शरीर से बाहर निकाला (तं जहा-रयणाणं जाव रिहाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाउंति ) रत्नों के यावत् रिष्टों के यथा बादर पुद्गलो को उन्होंने दूर कर दिया. ( परिसाडित्ता अहासुहुमपोग्गले परियायंति ) उन्हें दूर करके यथा सूक्ष्म पुद्गलों को उन्होंने ग्रहण किया, ( परिणाइत्ता दोच्चपि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति ) ग्रहण करके दुबारा भी उन्होंने फिर वैक्रियसमुद्घात किया. ( समोहणित्ता संवट्टयवाए विउव्वंति ) वैक्रियसमुद्घात करके फिर उन्होंने संवर्तक वायु की विकुर्वणा की ( से जहानामए भइयदारए सिया तरुणे जुगवं बलवं अपायके थिरसंघयणे थिरग्गहत्थे ) जैसे कोई भृत्यदारक से और वह तरुण-यौवनसम्पन्न हो, युगो(वदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमति ) ना तेम८ नमः २४१२ शन तमाशानोमा ताRan. ( अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणति ) त्यां ने तमो वैष्ठिय समुधात घ्या. (समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाइ दंडं निसिरंति ) वष्ठिय समुद्धात ४शन तेभरे सयालयोन પ્રમાણ દંડરૂપમાં પોતાના આત્માના પ્રદેશને શરીરમાંથી બહાર કાઢ્યા. (तं जहा-रयणाणं जाव रिटाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाइंति ) रत्नांना यावत रिष्टीन। यथा मा४२ पुगताने तेम ६२ ४ा. ( परिसाडित्ता अहासुहमपुग्गले परिणामंति ) तमन २ ४शन यथा सूक्ष्म पुगतान तमा अ५ ४ा'. (परिसाडित्ता दोच्च पि वेव्वियसमुग्घाएण समोहणंति अ ४शन भी मत ५ तेभरे यि समुधात . ( समोहणित्ता संवट्टयवाए विउठ्वंति ) यि समुधात रीने ५छी तमा सवत वायुनी विए। ४३री (से जहा नामए भइयदारए सिया तरुणे जुगवंबलवं अप्पायके थिर संघयणे थिरग्गहत्थे ) २५ बृत्यहा२४ २ त-योवन-सपन्न ।य, युगो
શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧