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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे सव्वोसहिसिद्धत्थहिं य सव्विड्ढीए जाव पवाएणं महया महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचिति ।। सू० ८६ ।। ५८४ छाया - ततः खलु तं सूर्याभं देवं चतस्रः सामानिकसाहस्त्र्यः, चतस्रः अग्रमहिष्यः सपरिवाराः तिस्रः परिषदः सप्त अनीकाधिपतयः षोडश आत्मरक्षक देयसाहस्त्र्यः अन्येऽपि बहवः सूर्याभविमानवासिनो देवाश्च देव्यश्च तैः स्वाभाविकैश्च वैक्रियैव वरकमलप्रतिष्ठानैश्च सुरभिवरवारिंप्रतिपूर्णैः चन्दनकृतचर्चितैः आविद्धकष्ठेगुणैः पद्मोत्पल पिधानैः सुकुमाल कोमलपरिगृहीतेः अष्ट 'तणं तं सूरिया देवं ' इत्यादि । सूत्रार्थ - (तरण) इसके बाद ( तं सूर्याभं देवं चत्तारि सामाणियसाहसीओ) उस सूर्याभदेव का चार हजार सामानिक देवोंने (चत्तारि - सपरिवाराओ अग्गमविसीओ) परिवारसहित चार अग्रमहिषियोने (तिन्नि) परिसाओ ) तीन परिषदाओंने (सत्त अणियाहिवइणो ) सात अनीकाधिपतियोंने ( सोलस आयखखदेवसाहस्सीओ) १६ हजार आत्मरक्षकदेवोंने (अन्ने वियबहवे सूर्याभविमानवासीणो देवा य देवीओ य ) तथा और भी अनेक सूर्याभविमानवासी देवोंने एवं देवीयोंने ( तेहि साभाविएहिं य विउन्विएहि य वरकमलपट्ठाणेहि य सुरभिवरवारिपुण्णेहि) उन स्वाभाविक एवं विक्रियाशक्ति से निष्पादित किये गये ऐसे कलशों से कि सुन्दर कमलों के ऊपर स्थापित किये गये, तथा सुगंधित उत्तम जल से भरे हुए हैं (चंदणकयचच्चिएहि आविद्धकंठेगुणेर्हि) एवं चंदन से जिन पर लेप किया 'तएणं तं सूरियाभ देवं ' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( तए णं) त्यारपछी (तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणिय साहसीओ ) ते सूर्यालदेवना यार हन्तर सामानि हेवेो (चत्तारि सपरिवाराओ अगमहिसीओ) परिवार सहित अग्रहिषीओने ( तिन्नि परिसाओ ) ऋण परिषहासोने ( सत्त अणियाहिवइणो ) सात अनीअधिपतियाने ( सोलस आयरक्खदेवसाद्दस्सीओ) सोज हन्तर आत्मरक्ष४ हेवाने ( अन्ने वि बहवे सूरियाभविमान वासिणो देवा य वेवीओ य ) तेन खील पशु घणां सूर्यालविभानवासी हेवाने अने देवीसोने ( साभाविएहिं य विव्वहिं य वरकमलपइट्टाणेहिं य सूरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं ) ते સ્વાભાવિક અને વિક્રિયા શક્તિથી નિષ્પાદિત કરવામાં આવેલા કળશેાથી-કે જેઓ સુંદર કમળાના ઉપર મૂકેલાં છે તેમજ સુવાસિત ઉત્તમ જળથી ભરેલાં छे. ( चंदण कयचच्चिएहिं आबिद्धकंठेगुणेहिं) यन्हनवडे नेभने लिप्त करवामां आव्यां छे. याने भेमनां ग्रीवा स्थानमा पुण्यभाजाओ सुशोलित छे. ( पउमुप्पलपिहाणेहिं ) શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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