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________________ सुबोधिनी टीका. सू. ८१ उपपातसभा वर्णनम् महत्येका अभिषेकसभा प्रज्ञप्ता । सुधर्मागमकेन यावद् गोमानसिका मणिपीठिका सिंहासनं सपरिवारं यावद् दामानि तिष्ठन्ति । तत्र खलु सूर्याभस्य देवस्य सुबहु आभिषेक्यं भाण्डं संनिक्षिप्तं तिष्ठति, अष्टाष्टमङ्गलकानि तथैव । तस्याः खलु अभिषेकसभाया उत्तरपौरस्त्ये अत्र खलु अलङ्कारिकसभा प्रज्ञप्ता, यथा सभा सुधर्मा, मणिपीठिका, अष्ट योजनानि, सिंहासनं सपरिवारम् । है (तस्स णं हरस्स उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं महेगा अभिसेयसभा पण्णत्ता) इस हदके ईशानकोने में एक विशाल अभिषेकसभा कही गई है (सुहम्मागमएणं जाव गोमाणसियाओ मणिपेढिया सीहासणं सपरिवारं जाव दामा चिट्ठति सुधर्मासभा के वर्णन के अनुसार यावत् गोमानसिका (शय्याकार आसनविशेष) का वर्णन गोमानसिका के वर्णन के बाद मणिपीठिका का वर्णन और फिर मणिपीठिकास्थित सपरिवार सिंहासन का वर्णन यावत् दामवर्णन पर्यन्ततक जानना चाहिये-(तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अभिसेके भंडे संनिक्खित्ते चिट्ठइ) वहां सूर्याभदेव के प्रचुर अभिषेक संबंधी भाण्ड रखे हुए हैं (अट्ठमं गला तहेब) आठ आठ स्वस्तिकादिकमंगलक भी यहां उसी तरह से कहना चाहिये तीसे णं अभिसेगसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं अलंकारिया सभा पण्णत्ता)इस अभिषेकसभाके ईशानकोनेमें एक अलंकार सभा कही गई है(जहा समा सुहम्मा, मणिपेढिया, अट्ठजोयणाई सीहासणं सपरिवार) जैसा वर्णन सुध सभा का किया गया है वैसा वर्णन इस अलंकारिक सभा का करना पतिमा छे. (तस्स णं हरस्स उत्तरपुरथिमेणं एत्थणं महेगा अभिसेयसभा पण्णत्ता) मोहन शान मां से विशाल मलिषे सला वाय छे. (सुहम्मागमएणं जाव गोमाणसियाओ मणिपेढिया सीहासणं सपरिवारं जाव दामा चिटुंति ) सुध समान वर्णन भु०४५ यावतू गोमानसिानु वर्णन, मानसिना વર્ણન પછી મણિપીઠિકાનું વર્ણન અને ત્યારબાદ મણિપીઠિકાસ્થિત સપરિવાર सिंहासनना वर्णन सुधीनु वर्णन मी समाने. (तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अभिसेक्के भंडे संनिक्खित्ते) त्या सूर्यालqना प्रयु२ मात्रामा मलिषे सधी लां31-पास-भूस छ. (अदृटु मंगलगा तहेव) मा ४ मा स्वस्ति वगेरे भो । ५९५ मा पूर्वनी सभा समन्व। . (तीसे गं अभिसेगसभाए उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं अलंकारियसभा पण्णत्ता) 0 मभिषे समान शानीमा मे मसा२ समा ४२वाय छ, ( जहा सभा सुहम्मा, मणिपेढिया, अठ्ठ जोयणाई सीहासणं सपरिवारं) सुघर्भासमानु२ प्रमाणे वन ४२वामा આવ્યું છે. તે પ્રમાણે જ અલંકારિક સભાનું વર્ણન પણ સમજવું જોઈએ. અહીં श्री २।४ प्रश्नीय सूत्र:०१
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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