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________________ राजप्रश्नीयसूत्रे तत्र खलु सूर्याभस्य देवस्य सुबहु अलङ्कारिक भाण्डं संनिक्षिप्तं तिष्ठति, शेषं तथैव । तस्याः खलु अलङ्कारिकसभायाः उत्तरपौरस्त्ये अत्र खलु महत्येका व्यवसायसभा प्रज्ञप्ता, यथा उपपातसभा यावत मणिपीठिका सिंहासनं सपरिवारं अष्टाष्टमङ्गलकानि०। तत्र खलु सूर्याभस्य देवस्य अत्र खलु महदेकं पुस्तकरत्नं संनिक्षिप्तं तिष्ठति । तस्य खलु पुस्तकरत्नस्य अयमेतद्र्पो चाहिये. यहां मणिपीठिका और सपरिवार सिंहासन का कथन जैसे पहिले कहा जा चुका है वैसा कहना चाहिये. सिंहासन का आयामविस्तार आठ योजन का है। (तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अलंकारियभंडे संनिक्खित्ते चिट्ठइ, सेसं तहेव) उस अलंकारिक सभा में सूर्याभदेव के प्रचुर अलंकारों से भरे हुए. भाण्ड रखे हुए हैं बाकी का और सव कथन पूर्व की तरह जानना चाहिये ( तीसे णं अलंकारियसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं महेगा ववसायसभा पण्णत्ता ) उस अलंकारिक सभा के ईशानकोने में एक विशाल व्यवसायसभा कही गई हैं (जहा उववायसमा जाव मणिपीठिया सीहासणं सपरिवारं अष्ठमंगलगा०) जैसा उपपातसभा के विषय में कथन किया जा चुका हैं इसी तरह से यहां पर भी मणिपीठिकाएँ हैं, सपरिवार सिंहासन हैं आठ २ मंगलक हैं (तत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स एत्थ गं महेगे पोत्थयरयणं संनिक्खित्ते चिट्ठइ) इस व्यवसायसभा में सूर्याभदेव का एक विशाल पुस्तकरत्न रखा हुआ है । (तस्स णं पोत्थयरयणस्स મણિપીઠિકા અને સપરિવાર સિંહાસનનું કથન પહેલાની જેમ જ સમજવું જોઈએ. सिंहासनन। मायाम-विस्ता२ मा योनी . (तत्थणं सूरियाभस्स देवस्स सुबहु अलंकारियभंडे संनिश्चित्ते चिदुइ, सेसं तहेव) ते २८118२ समामा પુષ્કળ અલંકારોથી પૂરિત સૂર્યાભદેવના ભાંડો મૂકેલા છે. શેષ બધું કથન પહેaiनी रेभा समावुन. (तीसे गं अलंकारियसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थणं महेगा ववसायसभा पण्णत्ता) ते Rsससाना शानमा ४ विशा ०यवसायसमा ४२वाय छे. (जहा उववायसभा मणिपीठिया सीहासणं सपरिवारं अट्ट मंगलगा०) प्रमाणे ५५ात सलाना विष पूर्व वन ३२वामां माव्यु છે તેમજ અહીં પણ મણિપીઠિકાઓ, સપરિવાર સિંહાસને અને આઠ આઠ भानु न समj नये. (तत्थण सूरियाभस्स देवस्स एत्थ णं महेगे पोत्थयरयणं सनिक्खित्ते चिदुइ) मा व्यसलामा सूर्यामनु विशा पुस्त. २ल भूसुं छे. (तस्स गं पोत्थयरयणस्स इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते) मा पुस्त શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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