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________________ ५५२ राजप्रश्नीयसूत्रे तिच्छत्राणि । तस्याः खलु उपपातसभाया उत्तरपौरस्त्ये अत्र खलु महा नेको हृदः प्रज्ञप्तः, एकं योजनशतम् आयामेन, पञ्चाशद् योजनानि विष्कम्भेण, दश योजनानि उद्वेधेन तथैव । स खलु हूद एकया पद्मवश्वेदिकया एकेन वनखण्डेन सर्वतः समन्तात् सम्परिक्षिप्तः । तस्य खलु हूदस्य त्रिदिशि त्रिसोपानप्रतिरूपकाणि प्रज्ञप्तानि । तस्य खलु हृदस्य उत्तरपौरस्त्ये अत्र खलु है तथा उसके मध्यभाग में स्थित विशाल मणिपीठिका का वर्णन आठ योजन आयामविस्तार को लेकर और चार योजन के बाहल्य आदि को लेकर किया गया है, तथा उसमणिपीठिका के ऊपर वर्तमान देवशयनीय का जैसा वर्णन किया गया है और सुघर्मासभा के ऊपर आठ२ मंगलकों का ध्वजाओं का एवं छत्रातिच्छत्रों का किया गया है उसी प्रकार का वर्णन यहां पर भी करना चाहिये (तीसे णं उववायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं महेगे हर पण्णत्ते) उस उपपातसभा के ईशान कोने में एक विशाल हृद कहा गया है ( एगं जौयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं दसजोयणाई उव्वेणं तहेव ) इस हृद का आयाम लम्बाई एकसौ योजन का है एवं विस्तार ५० योजन का है । उद्वेध गहराई इसका १० योजन का है। (से णं हरए एगाए पउमवरवेयाम एगेणं वणसंडेणं सव्वओ) समता संपरिक्खित्ते) यह हृद एक पद्मवरवेदिका से और एक वनखण्ड से चारों ओर से बहुत ही अच्छी तरह घिरा हुआ है । ( तस्स णं हरस्स तिदिसि तिसोवाणपडिरूवगा पन्नत्ता ) इस हद की तीन दिशाओं में श्रेष्ठ सोपानत्रय पंक्तियां ઉલ્લેાકવન સુધીનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. તેમજ તેના મધ્યમાં સ્થિત વિશાળ મણિપીઠિકાનું વર્ણન આઠ ચેાજન આયામ વિસ્તાર અને ચાર ચેાજનના ખાહત્ય વગેરેનુ વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. તે મણિપીઠિકાની ઉપર વિદ્યમાન દેવશય્યાનું વર્ણન જે પ્રમાણે કરવામાં આવ્યું છે અને સુધર્માં સભાની ઉપર આઠ આઠ મ*ગલકાનું' ધ્વજાએનું અને છત્રાતિચ્છત્રાનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું छे ते तनु वर्णन ही या ४२वु लेह. ( तीसेणं उववायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं एत्थ णं महेंगे हर पण्णत्ते) ते उपयात सलाना ईशान मां से विशाण ह ( धरे। ) उडेवाय छे. ( एगं जोयणसर्य आयामेणं, पण्णासजोयणाई, विक्खंभेणं दस जोयणाई, उब्वेहेणं तहेव ) ते हनो आयाम मेसो योजन भेटलो छे अने विस्तार ५० येोन्न भेटलो छे. उद्वेध सेना १० योजन भेटले छे. ( से णं हरए एगाए पउमवर वेइयाए एगेणं वणसंडेण सव्वओ समता संपरिक्खित्ते) आा हे थोर पहवरवेहिाथी भने ! वनाउथी थेाभेर सरस रीते वटजाये। छे. (तत्स णं हरस्स तिदिसिं तिसोवाणपडिरूवगा पन्नत्ता) मा हनी भए हिशायामां उत्तम सोपान શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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