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________________ राजनीयसूत्रे मूलम् - तेसि णं वणसंडाणं तत्थ तत्थ तर्हि तहिं देसे बहूईओ खुड्डा खुड्डियाओ वावियाओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ विलपतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वयरामयपासाणाओ तवणिजतलाओ सुवण्णसुब्भरययवालुयाओ वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुओयारसुउत्तराओ णाणामणितित्थसुबद्धाओ चउक्कोणाओ आणुपुव्वसुजायव गंभीरसीयलजलाओ संछन्नपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पलकुमुयन लिणसुभगसोगंधियपोंडरी यसयपत्तसहस्सपत्त केसरफुल्लोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ पडिहत्थभमंतमच्छकच्छभअणेगसउणमिहुणगणपविचरियाओ पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेदियापरिक्खत्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ अप्पेगइयाओ आसवोयगयाओ अप्पेगइयाओ वारुणोयगाओ अप्पेगइयाओ खोरोयगाओ अप्पेगइयाओ घओयगाओ अप्पेगइयाओ खोदोयगाओ अप्पेगइयाओ पगईए उयगरसेणं पण्णत्ताओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ । तासि णं वावीणं जाव विलपतियाणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि ४२४ से- जो बडा ही सुहावना लगता है वह सुललित है, ये गेय के आठ गुण होते हैं । इन गुणों से रहित गेय केवल विडम्बनामात्र होता है । उरः शुद्ध, कण्ठशुद्ध इनका विवरण ४० वें सूत्र में किया गया जानना चाहिये ।। सू० ६३ ॥ કે શુદ્ધાતિશયથી જે અતીવ સરસ લાગે તે છે સૂલિત છે, આ બધા ગેયના આઠ गुण। छे. भी गुणोथी राहित गेय इत विटमा भात्र होय छे. ' उरः शुद्ध, कण्ठ शुद्ध खेभनु स्पष्टी४२४० मा सूत्रां वामां आव्यु छे. ॥सू० ६३॥ શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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