SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुबोधिनी टीका. स . ३९ सूर्याभस्य समुदघातकरणम् २७१ नमन्ति-नीचैर्भवन्ति, अवनम्य सममेव उन्नमन्ति-उच्चैर्भवन्ति-ऊर्ध्वमवतिष्ठन्ते, एवम्-अनेन प्रकारेण सहितमेव मिलितमेव यथा स्यात्तथा सहैवेति भावः । अवनमन्ति, एवं सहितमेव उन्नमन्ति, उन्नम्य स्तिमितमेव-निश्चलमेव अवनमन्ति, स्तिमितमेव उन्नमन्ति, सङ्गतमेव मिलितमेव यथास्यात्तथा सहैव अवनमन्ति, तथा-सङ्गतमेव उन्नमन्ति उन्नम्य सममेव प्रसरन्ति-विस्तृता भवन्ति-पृथक् प्रथग भवन्तीति भावः । प्रसृत्य सममेव आतोद्यविधानानि वादित्रभेदान् गृह्णन्ति-धारयन्ति, गृहीत्वा सममेव तानि वाद्यानि प्रावदयन्-प्रवादितवन्तः, तथा-प्रागायन्-प्रकर्षेण गीतवन्तः- तथा-प्रानृत्यन् प्रनृत्तवन्तः ॥ सू० ३९ ॥ ही साथ ऊँचे को उटे-ऊँचे हुए अर्थात् खडे हो गये. (उन्नमित्ता एवं साहियामेव ओनमंति एवं साहियामेव उन्नमंति) ऊँचे उठकर फिर वे मिलकर निचे झुके, और मिलकर ही ऊँचे उठे ( उण्णमित्ता थिमियामेव ओनमंति, थिमियामेव उन्नमंति) उठकर फिर वे स्तिमितरूप (निश्चलरूप) से नीचे झुके और स्तिमितरूप से ही ऊंचे उठे (संगयामेव ओनमंति, संगयामेव उन्नमंति,) तथा साथ ही साथ में सब झुके और साथ ही साथ वे सब ऊंचे उठे (उन्नमित्ता समामेव पसरंति, पसरित्ता समामेव आउज्जविहाणाई गेण्हंति, गिण्हित्ता समामेव पवाएंसु, पगाइंसु, पणच्चिसु) उंचे उठकर फिर वे सब के सब एक ही समय में फैल गये. अलग २ हो गये. अलग २ होकर उन्होंने सबने एक ही समय में आतोद्यविधानों (विविधवाजों) को पकड लिया और एक साथ ही एक ही समय में उन बाजों को बजाया, अच्छी तरह से गाया और अच्छी तरह से नृत्य किया। इसका टीकार्थ मूलार्थ के अनुरूप ही है ॥ सू० ३९ ॥ साथे ९५२ च्या सेटले , मा थया ( उन्नमित्ता एवं सहियामेय ओनमंति, एवं साहिया उन्नमंति ) मा थनि तेस। मया सही साथे इरी नीय नभ्या मने पछी मेही साथे ३२१ मा च्या. (उण्णमित्ता थिमियामेव ओनमंति, थिमियामेव उन्नमंति) मा २४ ५छी तया स्तिमित ३५ निश्च ३५थी नीय नभ्या मन स्तिभित ३५थी असा यया. ( संगयमेव ओनमंति, संगयामेव उन्नमंति) मेथी साथे सो नभ्या मने सही साथे सो अयI S४या. ( उन्नमित्ता समामेव पस. रंति, पसरित्ता समामेव आउज्जविहाणाई गेण्हंति, गिण्हित्ता समामेव पवाएंसु पगाइंसु पणाञ्चिसु) ये ही पछी तया सवे मेरी समयमा विभेरा गया. આમ તેમ ફેલાઈ ગયા. વિખેરાઈને બધાએ એકી સાથે આતે વિદ્યાને–ઘણી જાતના વાજાઓને લીધા અને એકી સાથે એક જ સમયમાં તે વાજાઓને વગાડ્યા. અને બધાએ ખૂબજ સરસ રીતે ગાયું અને નૃત્ય કર્યું આ સૂત્રાને ટીકાથ મૂલ અર્થ, આ પ્રમાણે જ છે. સૂ. ૩૯ શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy