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________________ पीयूषवर्षिणो-टीका शास्रोपसंहारः ___ ७२६ मूलम्-सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धापिंडिओजइ हवेजा। सोऽणंतवग्गभइओ, सव्वागासे ण माएजा ॥ सू० १२१ ॥ वर्ग:=अनन्तैरपि वर्गवर्गः, तत्र तद्गुणो वर्गों, यथा द्वयोर्वर्गश्चत्वारः, तस्यापि वर्गो वर्गवर्गो, यथा षोडश, एवमनन्तशो वर्गितमपीत्यर्थः ॥ सू. १२० ॥ टीका-'सिद्धस्स' इत्यादि । 'सिद्धस्स' सिद्धस्य 'मुहो' सुखः सुरु सम्बन्धी 'रासी' राशिः समूहः, स च–'सम्बद्धापिंडिओ' सर्वाद्धापिण्डितः-सर्वाद्धाभिः= सर्वकालसमयैः पिण्डितो-गुणितो 'जइ हवेज्जा' यदि भवेत् , 'सो' स पुनः 'अणंतवग्गभइओ' अनन्तवर्गभक्तः अनन्तवगैर्विभागीकृतः, 'सव्वागासे' सर्वाऽऽकाशे लोकाऽलोकरूपे ‘ण माएज्जा' न मायात्-न स्थातुं शुक्नुयात् । अयं भावः-इह किल निरुपमं सुख गृह्यते, ततश्च यत आरभ्य लोके सुखशब्दप्रवृत्तिः, तदवधीकृत्य एकैकगुणवृद्धितारतम्येन तावत् तत् सुखं के वर्ग करने का नाम वर्गवर्ग है। जिस प्रकार दो का वर्ग ४, और चार का वर्ग १६ होता है । १६ वर्गवर्ग है ॥ सू. १२० ॥ 'सिद्धस्स सुहो रासी' इत्यादि । (सिद्धस्स सुहो रासी सम्बद्धापिंडिओ जइ हवेज्जा) सिद्ध भगवान् के सुख को जो राशि है वह सर्वकाल के समयों से यदि गुणित की जाय, और ( सोऽणतवग्गभइओ) उस उत्पन्न महाराशि में अनन्त वर्गों से भाग दिया जाय, तो भी ( सव्यागासे ण माएजा) वह सिद्धों के सुखों की विभक्त सुखराशि समस्त आकाश में नहीं समा सकती है। मतलब इसका यह है कि लोक में जो सुख-शब्द से कहा जाता है उस सुख में एकएक गुण की क्रमिक वृद्धि से जब वह सुख अनन्तगुण वृद्धि पाकर अपनी अन्तिम अवधि છે. વર્ગને વર્ગ કરે તેનું નામ વર્ગ વર્ગ છે. જે પ્રકારે ૨ ને વર્ગ ૪, અને यारा वर्ग १६ थाय छे. १६ - छ. (सू. १२०) 'सिद्धस्स हो रासी' इत्यादि. (सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्वापिंडिओ जइ हवेज्जा) सिद्ध भगवानन। સુખની જે રાશિ છે તેને સર્વકાળના સમયથી જે ગુણવામાં આવે અને (सोऽणंतवम्गभइओ) तनाथ त्पन्न थयेटी त महाराशिने मन तथा मासी वामां आवे तो ५ ( सव्वागासे ण माएज्जा ) ते सिद्धानां सुभानी ભાગલબ્ધ સુખરાશિ સમસ્ત આકાશમાં સમાઈ શકતી નથી. આને અભિપ્રાય એ છે કે લોકમાં જે સુખ-શબ્દથી કહેવાય (સમજાય ) છે તે સુખમાં એક એક ગુણની ક્રમિક વૃદ્ધિથી જ્યારે તે સુખ અનન્તગુણ વૃદ્ધિ
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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