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________________ पीयूषवर्षिणी-डीका स. ७७ केवलिसमुद्घातविषये भगवगौतमयोः संवादः ६७३ मूलम् छडमत्थे णं भंते ! मणुस्से तेसिं घाणयोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं जाव जाणइ पासइ ? गोयमा ! जो इण समझे ॥सू० ७७ ॥ मूलम्-से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-छउमत्थे टीका-पुनर्गीतमः पृच्छति-' छउमस्थे गं' इत्यादि ! 'भंते !' हे भदन्त ! 'छउमस्थे णं मणुस्से' छमस्थः खलु मनुष्यः, 'तेसिं घाणपोग्गलाणं' लेषां प्राणपुद्गलानां 'किंचि वण्णेणं वणं जाव जाणइ पासइ' किञ्चिद्वर्णेन वर्ण यावज्जानाति पश्यति किम् ? भगवानाह-'गोयमा! णो इणट्रे समटे' गौतम ! नाऽयमर्थः समर्थः । सू. ७७ ॥ टीका-'से तेणट्रेणं' इत्यादि । ‘से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ ' अथ . . 'छउमस्ये णं भंते ! मणुस्से' इत्यादि । पुनः गौतम ने पूछा-(छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से ) हे भदन्त ! क्या छमस्थ ममुष्य, (तेसिं घाणपुग्गलाणं) उन सुगंधित पुद्गलों को (किंचि वण्णे वणं जाव) वर्ण से यावत् गंध स्पर्शादि से थोड़ा भी (जाणइ पासइ) जान सकता है ? देख सकता है ! प्रभु ने कहा कि (गोयमा!) हे गौतम ! (णो इणटे समद्वे) यह अर्थ समर्थ नहीं है । सू. ७७॥ ‘से तेण?णं' इत्यादि । (से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचइ) हे गौतम ! छमस्थ उन निर्जरापुद्गलों को गंधादिगुणों द्वारा थोड़ा भी नहीं जान सकता है-यह जो बात कही गई है सो इसलिये 'छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से' छत्यादि. anी गीतमे ५ यु-(छउमत्थे णं भंते! मगुस्से)मन्त! शुभस्थ मनुष्य, (सेसिं घाणपोग्गलाणं) त सुधित पुगवाने पहुंथी तभ०४ गध स्पर्श माहिथी १२ प ( जाणइ पासइ) mea श छ ? ने श छ ? प्रभुये ४ (गोयमा !) 8 गौतम ! (णो इणद्वे समढे) ॥ २मर्थ समर्थ ना. (सू. ७७) ‘से वेणगुणं' त्याहि. (से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) 8 तम! :छA२५, तनिशપુદગલાને ગંધ આદિગુણે દ્વારા જરા પણ જાણી શકતું નથી એમ જે
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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