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औपपातिक
मूलम् - से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु णि. हगा भवति, तं जहा - बहुरया १, जीवपएसिया २, अव्वत्तिया
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टीका -' से जे इमे ' इत्यादि । ' से जे इमे गामागर जाव सष्णिवे से' अथ य इमे ग्रामाकर यावत् - संनिवेशेषु 'णिण्हगा' निह्नवाः - निहुवते = अपलपन्तिअन्यथा प्ररूपयन्तीति निह्नवाः = मिथ्यात्वाभिनिवेशाजिनोक्तार्थस्यापलापका इत्यर्थः, यथ जमाल्यादयः; ते कतिविधा भवन्ति ? इत्याकाङ्क्षायां दर्शयति- 'तं जहा ' तवथा- ' - 'बहुरया बहुरता :- बहुषु समयेषु रताः - आसक्ताः- - बहुभिरेव समयैः कार्यं सम्पद्यते, नैकेन समयेन
जाति के देवों में जन्म धारण करना पड़ता है । ( तहिं तेसिं गई) वहीं पर इनकी गति एवं (बावीसं सागरोवमाई ठिई) स्थिति २२ सागर की कही गई है । ( परलोगस्स अणाराहगा ) ये परलोक के अनाराधक कहे गये हैं । (सेसं तं चेव) अवशिष्ट पूर्ववत समझना चाहिये ॥ सू. ६० ॥
'से जे इमे गामागर' इत्यादि ।
( से जे इमे ) जो ये (गामागर - जाव - सणि वेसेसु) ग्राम आकर आदि स्थानों से लेकर संनिवेश तक कथित स्थानों में रहने वाले ( णिण्हगा भवंति ) जमालि आदि निबमिथ्यात्व के अभिनेवेश से जिनोक्त अर्थ के अपलापक होते हैं; जैसे - ( बहुरया जीवपरसिया अव्वत्तिया सामुच्छेइया दोकिरिया तेरासिया अवद्धिया इच्चेते सत्तपत्रयहिगा) बहुरत- बहुरतों का ऐसा सिद्धान्त है कि कार्य अनेक समयों में ही होता
આદિ ખ્યાપન કરવાના કારણે તેમને આભિયાગિક જાતિના દેવામાં જન્મ ધારણ ४२वे। थडे छे. (तहिं तेसिं गई ) त्यां तेभनी गति, तेभन (बावीसं सागरोव माई ठिई) स्थिति २२ सागरनी उडेसी छे. (परलोगस्स अणाराहगा) तेथे परखेोउना मनाराध उडेवाय छे. (सेसं तं चेव ) माडीनु मधु पूर्व प्रभाग समन्वु लेहये. (सू. यह)
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जे इमे गामागर ' छत्याहि.
(जे इमे) तेथे ? (गामागर जाव सण्णिवेसेसु) गाभ, व्या४२ साहि स्थानाथी बने सनिवेश सुधीनां उडेसां स्थानामा रहेवावाजा (णिण्हगा भवंति ) જમાલિ જેવા નિહનવ-મિથ્યાત્વના અભિનિવેશથી જિન ભગવાને કહેલા अर्थंना असाथ होय छे; नेवा - ( बहुरया जीवपएसिया अव्वत्तिया सामुच्छेया दोकिरिया तेरासिया अबद्धिया इच्चेते सत्त पवयणणिण्हगा ) (1) बहुरत - મહુરતાના એવા સિદ્ધાંત કે કાર્ય અનેક સમયેામાં જ થાય છે એક