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________________ uttafort - टीका सु. ६० आत्मोत्कर्षकादिविषये भगवद् गौतमयोः संवादः ६३५ माणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे आभिओगिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तर्हि तेसिं गई, बावीसं सागरोवमाइं ठिई, परलोगस्स अणाराहगा, सेसं तं चैव ॥ सू० ६० ॥ . वासाईं सामण्णपरियागं पाउणंति ' बहूनि वर्षाणि श्रामण्यपर्याय पालयन्ति ' पाउणित्ता' पालयित्वा ' तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंता ' तस्य स्थानस्य अनालोचितप्रतिक्रान्ताः ' कालमासे कालं किच्चा ' कालमासे कालं कृत्वा ' उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे आभिओगिएसु देवे देवत्ताए उववत्तारो भवंति ' उत्कर्षेणाच्युते कल्पे आभियोगिकेषु-अभियोगे = आज्ञाकर्मणि नियुक्ता अभियोगिकास्तेषु - आज्ञाकारिषु देवेषु देवत्वेनोपपत्तारो भवन्ति, एतेषां देवत्वं चारित्राराधकत्वेन, आभियोगिकत्वं चात्मोत्कर्षादिख्यापनात्; ' तहिं तेसिं गई ' तत्र तेषां गतिः, ' बावीसं सागरोवमाई ठिई ' द्वाविंशतिं सागरोपमानि स्थितिः, 'परलोमस्स अणाराहगां ' परलोकस्याऽनाराधकाः ' सेसं तं चेव ' शेषं तदेव ॥ सू० ६० ॥ पर्याय को पालते हैं, ( पाउणित्ता) पालकर (तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंता ) उन पापस्थानों की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये विना ( कालमासे कालं किच्चा ) काल अवसर में कालकर ( उक्को सेणं अच्चुए कप्पे आभिओगिएसु देवे देवताए उववत्तारो भवति) अधिक से अधिक अच्युतदेवलोक के अभियोगिक देवों में- जो इन्द्र आदि के आज्ञाकारी होते हैं, उत्पन्न हो होते हैं, । चारित्र की आराधना करने वाले होने से ये देवपर्याय तो पालते हैं, परंतु आत्मोत्कर्ष आदि ख्यापन करने के कारण इन्हें आभियोगिक आयारमां रडीने (बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणंति) घणां वरसों सुधी श्रीभएय-पर्यायने पाणे छे, ( पाउणित्ता) पाणीने ( तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कता) ते पापस्थानोनी याबोयना तेन प्रतिभा र्या वगर (कालमासे कालं किच्चा) अस अवसरमा अझ उरीने (उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे आभिओगि एसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति) वधारेभां पधारे अभ्युत देवलेोउना आलियो ગિક દેવામાં, જે ઈંદ્ર આદિના આજ્ઞાકારી હોય છે; ઉત્પન્ન થાય છે. ચારિત્રની આરાધના કરવાવાળા હેાવાથી તે દેવપર્યાય તે પામે છે; પરંતુ આત્મત્ક
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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