________________
पीयवर्षिणी-टीका सू. ६१ निह्नव विषये भगवद्गौतमयोः संवादः ७ ३, सामुच्छेइया ४, दोकिरिया ५, तेरासिया ६, अबजिया ७, इत्येवंवादिनो बहुरताः-जमालिमतानुयायिनः १; 'जीवपएसिया ' जीवप्रदेशिकाः-एक एव चरमप्रदेशो जीव इत्यभ्युपगमाज्जीवप्रदेशो विद्यते येषां ते तथा, एकेनाऽपि प्रदेशेन न्यूनो जीवो न भवति, अतो येनैकेन प्रदेशेन पूर्णः सन् जीवो भवति, स एवैकः प्रदेशो जीवो भवतीत्येवंविधवादिनः तिष्यगुप्ताचार्यमतानुयायिनः २; ' अव्वत्तिया' अव्यक्तिकाः-अव्यक्तं समस्तमिदं जगत् , साध्वादिविषये श्रमणोऽयं देवो वाऽयम् इत्यादिविविक्तप्रतिभासोदयाऽभावात्, ततश्चाध्यक्तम् अस्फुटं वस्तु-इति मतमस्ति येषां तेऽव्यक्तिकाः, अथवा अविद्यमाना साध्वादिव्यक्तिरेषामित्यव्यक्तिकाः, आषाढाचार्यशिष्यमताऽन्तर्वर्तिनः ३, “सामुच्छेइया' सामुच्छेदिकाः-प्रतिक्षणं नारकादिभावानां समुच्छेद-क्षयं वदन्तीति सामुच्छेदिकाः-क्षणक्षयिभावप्ररूपका अश्वमित्रमतानुयायिनः ४; 'दोकिरिया' द्वैक्रियाः-द्वेक्रिये=शीतवेदनोष्णवेदनादिहै, एक समय में नहीं। ये जमालिमत के अनुयायी होते हैं १ । जीवप्रदेशिक :का ऐसा कहना है कि जीव एक चरमप्रदेशस्वरूप ही है । जीव यदि एक भी प्रदेश से न्यून हो तो वह जीवसंज्ञा प्राप्त नहीं कर सकता; अतः जिस एक प्रदेश से परिपूर्ण होकर वह जीव कहलाता है वह उस एकप्रदेशस्वरूप ही है। ये तिष्यगुप्त आचार्य के मतानुयायी होने हैं २ । अव्यक्तिक का यह कहना है कि यह समस्त जगत साधु आदि के विषय में सर्वश्रा अव्यक्त है; क्यों कि ये देव हैं, ये श्रमण हैं-इस प्रकार का भिन्न २प्रतिभास नहीं होता है। इसलिए वास्तविक क्या है यह सब अव्यक्त-अस्फुट है । अथवा ये अव्यक्तिक जन किसी को भी साधुव्यक्ति नहीं मानते हैं । ये आषाढाचार्य के शिष्यों के मत के अन्तर्वर्ती माने जाते हैं ३ । सामुच्छेदिक-मतवादी प्रत्येक पदार्थ को क्षणविनश्वर मानते हैं। ये अश्वमित्र के मत के अनुयायी हैं ४ । द्वैक्रिय-मतवादी की ऐसी मान्यता है कि एक ही समय में समयमा नलि. मा भासिनतना मनुयायी हाय छे. (२) जीवप्रदेशिक-मनु એવું કહેવું છે કે જીવ એક ચરમ–પ્રદેશ–સ્વરૂપ જ છે. જીવ જે એક પ્રદેશથી ન્યૂન (કમ) હોય તે તે જીવસંજ્ઞા પ્રાપ્ત કરી શકે નહિ. આથી જે એક પ્રદેશથી પરિપૂર્ણ હોય તે જીવ કહેવાય છે, તે એક પ્રદેશ સ્વરૂપ જ છે. આ तिष्यशुत मायायन भतानुयायी होय छे. (३) अव्यक्तिक-समर्नु अभ કહેવું છે કે આ સમસ્ત જગત સાધુ આદિના વિષયમાં સર્વથા અવ્યક્ત છે, કેમકે તેઓ દેવ છે, આ શ્રમણ છે, આ પ્રકારને જુદો જુદો પ્રતિભાસ હતો નથી. એથી વાસ્તવિક શું છે એ બધું અવ્યક્ત-અસ્કુટ છે. અથવા આ અવ્યક્તિક અને કોઈને પણ સાધુ વ્યક્તિ માનતા નથી. આ અષાઢાસાयंना शिष्याना भतना मतपत्ती मनाय छे. (४) सामुच्छेदिक-मामले પદાર્થને ક્ષણભંગુર માને છે, તેઓ અશ્વાયત્રના મતના અનુયાયી છે.