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________________ पीयूषषिणो-टीका सु. ३५ अम्बडपरिव्राजकविषये भगवद्गोतमयोः संवाद: ५८३ मूलम्-अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पञ्चक्खाए जावज्जीवाए जाव परिग्गहे, णवरं सव्वे मेहुणे पञ्चक्खाए जावजीवाए ॥ सू० ३४॥ मूलम्-अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पड़ टीका-'अम्मडस्स णं परिवायगस्स' इत्यादि। 'अम्मडस्स णं परिवायगस्स' अम्बडस्य खल्लु परिव्राजकस्य 'थूलए पाणाइवाए पञ्चक्रवाए जावज्जीवाए जावपरिग्गहे ' स्थूलः प्राणातिपातः प्रत्याख्यातो यावज्जीवम् , यावत्पदेन मृषावादः, अदतादानं च गृह्येते; परिग्रहश्च प्रत्याख्यातः, 'णवरं' नवरं 'सव्वे' सर्व सर्वविधं 'मेहुणे' भैथुनमपि ‘पञ्चक्खाए जावज्जीवाए' प्रत्याख्यातं यावजीवम् ॥ सू० ३४ ॥ टीका-'अम्मडस्स णं परिवायगस्स' इत्यादि । 'अम्मडस्स णं परि. 'अम्मडस्स णं परिवायगस्स' इत्यादि । ( अम्मडस्स णं परिवायगस्स) इस अम्बड परिव्राजक ने (थूलपाणाइवाए पच्चकवाए जावज्जीवाए ) स्थूल प्राणातिपात का यावजोव परित्याग किया है, (जाव परिग्गहे ) इसी तरह स्थूल मृषावाद का, स्थूल अढ़त्तादान का, स्थूल परिग्रह का भी याव जीव परित्याग किया है । (णवरं) परंतु (सव्वे मेहुणे पञ्चक्खाए जावज्जीवाए) स्थूलरूप से ही मैथुन का परित्याग नहीं किया है; किन्तु इसका तो उसने समस्त प्रकार से जीवनपर्यन्त परित्याग किया है ।। सू. ३४ ॥ 'अम्मडस्स णं परिवायगस्स' इत्यादि । (अम्मडस्स णं परिवायगस्स) इस अम्बड परिव्राजक के लिये विहार करते 'अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स' ऽत्याहि. (अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स) २॥ सम्म परिवार (थूलपाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए) स्थूस प्रातियातन 404 परित्याग ४यो छे. (जाव परिग्गहे) तवी ४ ते २८ भृषावाहनो, स्थूत महत्तहाननी, स्थूल परियडनी ५ या परित्यायो छ. (णवरं) परंतु (सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए) २थूस३५थी ४ भैथुननी परित्या नथी ४यो ५२न्तु તેને તે તેમણે સમસ્ત પ્રકારથી જીવનપર્યન્ત પરિત્યાગ કર્યો છે. (સૂ૦ ૩૪) " अम्भडस्स णं परिव्वायगस्स" त्याहि. (अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स) २॥ समय परिवा४४ ने भाट विहार
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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