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आपपातिकसूत्रे उडढं बाहाओ पगिज्झिय २ सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अन्नया कयाइं तदावरणिजाणं कम्माणं विनयशीलतया, 'छटुंछद्रेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं' षष्ठषष्ठेन अनिक्षिप्तेन तपःकर्मणा-मुहुर्दिनद्वयाऽनशनरूपेण अविश्रान्तेन तपोरूपेग कर्मणा, 'उड्ढं बाहाओ पगिज्झियर' ऊर्ध्वं बाहू प्रगृहय२=बाहू ऊर्ध्वं कृत्वा 'मुराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स' सूर्याभिमुखस्याऽऽतापनाभूमावातापयतः 'सुभेणं परिणामेणं' शुभेन परिणामेन शुभ-रूपयाऽऽत्मपरिणत्या, 'पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं' प्रशरतैरध्यवसानैःउत्तममनोविशेषैः, 'पसत्थाहिं लेसाहिं विमुज्झमाणीहिं' प्रशस्ताभिर्लेश्याभिविशुध्यमानाभिः 'अन्नया कयाइं' अन्यदा कदाचित् ‘तदावरणिजाणं कम्माण मृदुमार्दव गुण से युक्त है, तथा अत्यंत विनीत भी है । (अनिक्खित्तेणं ) तथा लगातार (छठे छ?णं तवोकम्मेणं ) छठ छठ-बेला-की तपस्या करनेवाला है। एवं (उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय२) बाहुओं को ऊपर उठा कर, (मराभिमुहस्स ) सूर्य के सन्मुख (आयावणभूमीए आयावेमाणस्स ) आतापना के योग्य प्रदेश में आतापना लेता है। अतः (अम्मडस्स परिव्यायगस्स ) इस अम्बड परिव्राजक को (सुभेणं परिणामेणं) शुभ परिणाम से-शुभरूप आत्मा की परिणति से, (पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं ) प्रशस्त अध्यवसानों से-उत्तम विचारधाराओं से, (पसत्थाहिं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं) प्रशस्त लेश्याओं की विशुद्धि होने से, (अण्णया कयाई) किसी एक समय (तदावरणिज्जाणं कम्माणं) तदावरणीय कर्मों-वीर्य के, वैक्रियलब्धि के एवं अवधि ज्ञान के
५) छ. (अनिक्खित्तेणं) तथा साता२ (छटुंछटेणं तवोकम्मेणं) ७४ ७४मेसा-नी तपस्य॥ ४२११ छ. तेभ ( उड्ढ बाहाओ पगिझियः ) डायने
या ४शने (सूराभिमुहस्स) सूर्यनी सन्भुज (आयावणभूमीर आयावेमाणस्स) मातापनाने योग्य प्रदेशमा मातापन छे माथी ( अम्मडस्स परिव्वायगस्स) से २५ परिवा४४ने (सुभेणं परिणामेणं) शुभ ५.२ मिथी, शुभ३५ यात्मानी परिणतिथी, (पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं) प्रशस्त मध्यवसानोथी-उत्तम विचारधारासाथी, (पसत्थाहिं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं ) प्रशस्त बेश्यामानी विशुद्धि पाथी (अण्णया कयाई) २४ समय (तदावरणिजाणं कम्माणं) ता१२७य ४ -वीर्य, वैयिनि मने विज्ञानना