SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 623
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६२ औपपातिकसूत्रे जाव अडवीए उदगदायारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए-त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमé पडिसुणेति, पडिसुणित्ता तीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगदायारस्स 'सव्वओ समंता मग्गणगवेषणं करेंति, करित्ता उदगदायार'उदगदायारस्स सबओ समंता मग्गणगवसणं करित्तएत्ति कटु' उदकदातुः सर्वतः समन्तात् मार्गणगवेषणं कर्तुम् इति कृत्वा, 'अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढे पडिसुणेति' अन्योऽन्यस्य अन्तिके एतमर्थ प्रतिशृण्वन्ति स्वीकुर्वन्ति, 'पडिसुणित्ता' प्रतिश्रुत्य 'तीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगदायारस्स सबओ समंता मग्गणगवेसणं करेंति' तस्याम् अग्रामिकायां यावदटव्याम् उदकदातुः सर्वतः समन्ताद् मार्गणगवेषणं कुर्वन्ति, 'करित्ता' कृत्वा, 'उदगदायारमलभमाणा' उदकदातारम् अलभमानाः, - 'दोचंपि दाता की मार्गणा एवं गवेषणा करें, (त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमé पडिसुणेति) इस प्रकारकी की गई सलाह सबने एकमत होकर मान ली। (पडिमुणित्ता तीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगदायारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेंति) पश्चात् उस सलाह के अनुसार वे सब उस अग्रामिक अटवी में सर्व प्रकार से चारों ओर पानी के देने वाले दाता की गवेषणा करने में संलग्न हो गये । (करित्ता उदगदायारमलभमाणा दोचपि अण्णमण्णं सदावेंति सदावित्ता एवं वयासी) गवेषणा करते २ जब उन्हें कोई તમારા માટે એ જ એક કલ્યાણકારક માર્ગ છે કે આપણે આ અગ્રામિક તેમજ નિર્જન વનમાં સર્વ પ્રકારથી ચારે કોરે કઈ જલના દાતારની માગણી तभ०४ ५ ४श. (त्ति कट्ठ अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिसुणेति) २ प्रा२नी ४२सी ससाड पधारी भत ने मानी.बीधी. ५०ी (पडिसुणित्ता तीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगदायारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेंति) ते साडने मनुसरीने ते या ते मयाभि मटी (वन)मा સર્વ પ્રકારથી ચારે કોર પાણી દેવાવાળા દાતારની શોધ કરવામાં સંલગ્ન २४ गया. (करित्ता उद्गदायारमलभमाणा दोच्चंपि अण्णमण्णं सद्दावेंति सद्दावित्ता एवं वयासी) शोध ४२di ४२di पर तमने न्यारे । ५५५ पाना
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy