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पीयूषवर्षिणी-टोका सु. २४ अम्बडपरिव्राजक शिष्य विहारः
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मूलम् — एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए कंचि देसतरमणुपत्ताणं से उदए जाव झीणे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियाए
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टीका--ते परिव्राजकाः परस्परं यदवादिषुस्तन्निर्दिशति - ' एवं खलु देवाणुपिया' इत्यादि । ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! ' एवं खलु हे देवानुप्रियाः ! अहं sire अगामि आए जाव अडवीए ' अस्माकमरया अग्रामिकाया यावदटव्याः, कंचिदेसंतरमणुपत्ताणं से उदए जाव झीणे ' किञ्चिदेशान्तरमनुप्राप्तानां तत् उदकं यावत् क्षीणम्, 'तं सेयं खलु देवाणुप्पिया' तत् तस्मात् श्रेयः खलु हे देवानुप्रियाः ? ' अहं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए ' अस्माकमस्यामग्रामिकायां यावदटव्याम्, नहीं देखकर, (अण्णमण्णं सदावेति) परस्पर में एक दूसरे का आह्वान करने लगे, (सद्दावित्ता एवं वयासी) और आह्वान करके इस प्रकार बोले || सू० २३ ॥
एवं खलु देवाणुपिया ! ' इत्यादि ।
( एवं खलु देवाणुप्पिया ! ) हे देवानुप्रियों ! यह बात बिलकुल ठीक है कि (अहं इमी अगामियाए जाव अडवीए कंचिदेसंतरमणुपत्ताणं से उदए जाव झीणे) हम लोगों का, इस अग्रामिक अटवी में कि अभी जिसे थोड़ी ही तय की है, वह अपने २ स्थान से लाया हुआ जल अब समाप्त हो चुका है, (तं सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्हं इमी अगामियाए जाव अडवीए उदगदायारस्स सव्वओ समंता वेसणं करिए) ऐसी हालत में हमारे तुम्हारे लिये यही एक कल्याणकारक मार्ग है कि हम इस अग्रामिक एवं निर्जन अटवी में सर्व प्रकार से चारों ओर किसी जलमोसावा साज्या, ( सद्दावित्ता एवं वयासी) भने मोसावी या प्रारे उडेवा साज्या ( सू० २३ )
" एवं खलु देवाणुप्पिया ! " इत्याहि.
( एवं खलु देवाणुप्पिया ! ) हे हेवानुप्रियो ! मे बात जिसस ही छे ( अहं इमी अगामियाए जाव अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से उदए जाव झीणे) आयो मा वनभां थोडी दूर यासीने माप्या छीमे, भने हुमां જરાક જ શકાયા છીએ, ત્યાં તે પોતાના સ્થાનેથી લાવેલું પાણી સમાસ ग. ( तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए उद्गदायारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करिश्तए) मेवी हासतभां भभारा