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________________ औपपातिकसूत्र लोइय-अपडिकंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तर्हि तेसिं गई, सेसं तं चेव, णवरं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई ॥ सू० १४॥ उक्तस्य पापस्थानस्य, 'अणालोइयअपडिकंता' अनालोचिताऽप्रतिक्रान्ताः-अनालोचिताश्च ते अप्रतिक्रान्ताः-गुरूणां समीपे अकृताऽऽलोचनका अतएव दोषादनिवृत्ता इत्यर्थः । 'कालमासे कालं किच्चा' कालमासे कालं कृत्वा, 'उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएम देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति' उत्कर्षेण सौधर्मे कल्पे कान्दर्पिकेषु= हास्यक्रीडाकारकेषु देवेषु देवत्वेनोपपत्तारो भवन्ति, 'तहिं तेसिं गई' तत्र तेषां गतिः 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव पूर्वोक्तमेव बोध्यम् । 'पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई' पल्योपमं वर्षशतसहस्राऽभ्यधिकं स्थितिः-लक्षवर्षाधिकं पल्योपमं स्थितिः ॥ नू० १४ ॥ किच्चा उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति) पालन करते हुए अंत समय वे अपने उक्त पापस्थानों की गुरु के समीप आलोचना नहीं करके उनसे निवृत्त नहीं होते हैं, इसलिए जब वे काल-अवसर में काल करते हैं, तव अधिक से अधिक सौधर्मकल्प में जो हास्यक्रीडाकारक देव हैं उनमें देवरूप से उत्पन्न होते हैं। (तहिं तेसिं गई सेसं तं चेव) वहीं पर उनकी गति आदि बतलाई गई है। यहां पर और भी जो कुछ वक्तव्य है वह इसी आगमके उत्तरार्ध में आठवें सूत्र की तरह समझ लेना चाहिये। (पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई) उस कल्प में उनकी स्थिति उस पर्याय में १ लाख वर्ष अधिक १ पल्य की जाननी चाहिये ।। सू० १४ ॥ सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति) पासन ४२i ४२ai અંત સમયે તેઓ પિતાનાં ઉક્ત પાપસ્થાનોની ગુરુની પાસે આલોચના ન કરવાથી તેનાથી નિવૃત્ત થતા નથી. તેથી જ્યારે તેઓ કાલ અવસરે કાલ કરે છે ત્યારે વધારેમાં વધારે સૌધર્મ ક૫માં જે હાસ્યક્રીડાકારક દેવ છે तभा १३ उत्पन्न थाय छे. (तहिं तेसिं गई सेसं तं चेव) त्यो भनी गति આદિ બતાવવામાં આવેલ છે. અહીં બીજું પણ જે કાંઈ વર્ણન છે તે આ मागभना त्तरार्थना सभा सूत्रनी पेठे सम य . (पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई) से ४८५म तेमनी स्थिति ते पर्यायभा १ ॥ वरस Siत १ पदयनी पशुपी नेस. (सू. १४)
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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