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औपपातिकसूत्रे मूलम्—से जे इमे गामागर जाव सन्निवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा-दगविइया दगतइया दगसत्तमा दगएक्कारसमा गतिस्तासां स्थितिस्तासामुपपातः प्रज्ञप्तः, तासां खलु हे भदन्त ! देवत्वं प्राप्तानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? इति प्रश्ने भगवानाह-'गोयमा ! ' हे गौतम ! इति । 'चउसढेि वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता' चतुःषष्टिं वर्षसहस्राणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ॥ सू० ११॥
टीका-'से जे इमे' इत्यादि । 'से जे इमे' अथ य इमे ईदृशाः, 'गामागरजाव सन्निवेसेसु मणुया भवंति' ग्रामाऽऽकर यावत् सन्निवेशेषु-प्रामाऽऽकर-नगर-निगमराजधानी-खेट-कर्वट-पट्टन-मडम्ब-द्रोणमुखा-ऽऽश्रम-संबाध-सन्निवेशेषु प्राग्व्याख्यातस्वरूपेषु मनुजा भवन्ति, 'तं जहा' तद्यथा-'दगविइया' दकद्वितीयाः-ओदनापेक्षया दकम्= उदकं द्वितीयं भोजने येषां ते दकद्वितीयाः, 'दगतइया' दकतृतीयाः-ओदनसूपरूपद्रव्यद्वयाऽपेक्षया दकम् उदकं तृतीयं येषां ते दकतृतीयाः, 'दगसत्तमा' दकसप्तमाः-ओदनादीनि न्तरों के देवलोक में देवता की पर्याय से उत्पन्न होती हैं । वहीं पर उनकी गति, वहीं पर उनकी स्थिति एवं वहीं पर उनका उपपात होता है। हे भदन्त ! वहाँ पर उनकी स्थिति कितनी है ? हे गौतम । (चउसढेि वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता) वहां उनकी स्थिति ६४ हजार वर्ष की है ॥ सू० ११॥
'से जे इमे गामागर जाव' इत्यादि।
(से जे इमे गामागर जाव सनिवेसेसु मणुया भवंति) ये जो इन ग्राम आकर आदि पूर्वोक्त स्थानों में इस प्रकार के मनुष्य होते हैं; (तं जहा) जैसे कि (दगबिइया) जिनके आहार में अन्न एवं द्वितीय पानी ये दो ही द्रव्य हों, (दगतइया) अन्न--चावल, दाल एवं तृतीय पानी ये तीन द्रव्य हों, (दगसत्तमा) छह द्रव्य अन्न-चावल-दाल आदि हों દેવલોકમાં દેવતાની પર્યાયથી ઉત્પન્ન થાય છે. અહીં જ તેમની ગતિ, અહીં જ તેમની સ્થિતિ તેમજ અહીં જ તેમને ઉપપાત થાય છે. હે ભદન્ત! ત્યાં तभनी स्थिति दी जाय छ ? 8 गौतम! (चउसद्धिं वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता) त्यां मनी स्थिति ६४ योस न२ १२सनी छे. (सू० ११) ___ 'से जे इमे गामगर जाव' त्याहि.
(से जे इमे गामगर जाव सन्निवेसेसुमणुया भवंति) मेसे। म। ॥भ, मा४२ माह 6५२ सा स्थानामा २ अरे मनुष्य थाय छ, (तं जहा) भी (दगबिइया) 2ना माडामा सन्न तभ०४ मीनु पो मे द्रव्य-पाथ डाय, (दगतइया) मन्न-योगा , तभी त्री पानी त्राण द्रव्य डेय,