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________________ औपपातिकमत्र द्धगाचारगबद्धगाहत्थच्छिण्णगा पायच्छिण्णगा कण्णच्छिण्णगा नकच्छिण्णगा ओच्छिण्णगा जिब्भच्छिण्णगा सीसच्छिण्णगा मुहच्छिण्णगामज्झच्छिण्णगावइकच्छच्छिण्णगाहियउप्पाडियगा कानि काष्ठमयानि लोहमयानि वा हस्तयोः पादयोर्वा बन्धनविशेषाः, तेषु बद्धकाः बद्धा एव बद्धकाः, स्वार्थे कः; 'णिअलबद्धगा' निगडबद्धकाः-निगडाः लौहमया पादयोर्बन्धविशेषाः 'बेडी' इति प्रसिद्धाः तेषु बद्धकाः-निगडबद्धा इत्यर्थः, ‘हडिबद्धगा' हडिबद्धकाः-हडिःखोटकः, तत्र बद्धकाः, 'चारगबद्धगा' चारकबद्धकाः-चारकाः कारागाराणि, तत्र बद्धकाः; 'हत्थच्छिण्णगा' हस्तच्छिन्नकाः-हस्तौ छिन्नौ येषां ते तथा, 'पायच्छि णगा' पादच्छिन्नकाः 'कण्णच्छिण्णगा' कर्णच्छिन्नकाः, 'नक्कच्छिण्णगा' नासिकाछिनकाः, 'ओढच्छिण्णगा' ओष्ठच्छिन्नकाः, 'जिब्भच्छिण्णगा' जिह्वाच्छिन्नकाः, 'सीसच्छिण्णगा' शीर्षच्छिन्नकाः, 'मुहच्छिण्णगा' मुखच्छिन्नकाः, 'मज्झच्छिण्णगा' मध्यच्छिन्नकाः, मध्यः उदरदेशः; 'वइकच्छच्छिण्णगा' वैकक्षच्छिन्नकाः-उत्तरासङ्गाऽऽकारेण विएक स्थान पर रोककर रख दिये जाते हैं, (णिअलबद्धगा ) बेड़ी से जकड़ दिये जाते हैं, ( हडिबद्धगा) काष्ठ के खोड़े में पैर डलबाकर रोक दिये जाते हैं, (चारगबद्धगा) जेलखाने में बंद कर दिये जाते हैं, ( हत्थच्छिण्णगा) तथा उनके दोनों हाथ काट दिये जाते हैं, (पायच्छिण्णगा) दोनों पैर छिन्नभिन्न कर दिये जाते हैं, ( कण्णच्छिण्णगा) कान छेद दिये जाते हैं, ( नक्कच्छिण्णगा) नाक छेद दी जाती है, (ओडच्छिण्णगा) ओष्ठ छेद दिये जाते हैं, (जिब्भच्छिण्णगा) जिह्वा छेद दी जाती है, (सीसच्छिण्णगा) शिर छेद दिया जाता है, (मुहच्छिण्णगा) मुख छेद दिया जाता है, (मज्झच्छिण्णगा) थाय छ भने तसा अपराध (अंडुबद्धगा) सोढाना तम०४ १४ाना मधनाथी डाय-५गने मांधान में स्थान ५२ २।४ी २४ाय छ, (णिअलबद्धगा) माथी १४ी हेवाय छ, (हडिबद्धगा) १४ाना सोडा (५४)मा ५॥ नापीने शठी २माय छे. (चारगबद्धगा) समानामा परी हेवामां आवे छ, (हत्थच्छिण्णगा) तथा तमना मन्ने हाथ पी नinाम मा छ, (पायच्छिण्णगा) भन्ने ५॥ छिन्न भिन्न ४२ नमामा आवे छे, (कण्णच्छिण्णगा) ४ान छही नामपामा आवे छे. (नक्कच्छिण्णगा) न छही नसाय छ, (ओदृच्छिण्णगा) 88 छही नपाय छे. (जिब्भच्छिण्णगा) से छही नपाय छे. (सीसच्छिण्णगा) शि२ छही नमाय छ. (मुहच्छिण्णगा) भुभ छी नसाय . (मज्झच्छिण्णगा)
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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