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पीयूषवर्षिणी-टीका सृ. ५६ भगवतो धर्मदेशना
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वासुदेवा नरगा रइया तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ माया पिया रिसओ देवा देवलोया सिद्धी सिद्धा परिणिव्वुया, अनेकविधनरकस्थानानि सन्ति । 'अस्थि णेरइया ' सन्ति नैरयिकाः = नरकनिवासिनः सन्ति, 'अस्थि तिरिक्खजोणिया ' सन्ति तिर्यग्योनिकाः, 'तिरिक्खजोणिणीओ ' सन्ति तिर्यग्योनिजाताः स्त्रियः, नरकनैरयिकादीनामदृश्यानां सत्तास्थापनाय कथनम् । 'अथ माया अस्थि पिया ' अस्ति माता अस्ति पिता, केचिदेवं मन्यन्ते - मातापितृव्यवहारो न वास्तविकः, यतो हि - यूकाकुमिगण्डोलकादयः स्वजनकं विनैवोत्पद्यन्ते, तन्मतनिराकरणार्थमिदं भगवता प्रोक्तमिति भावः । ' अत्थि रिसओ' सन्ति ऋषयः - ऋषयः = अतीन्द्रियाऽर्थद्रष्टारः सन्ति । केचित्त्वेवं वदन्ति - अतीन्द्रियार्थस्य द्रष्टारो न संभवन्ति, नरगा अस्थि णेरइया अस्थि तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ) अनेक विध नरकस्थान हैं और उनमें रहने वाले जीव नारकी हैं, तिर्यंचयोनि के जीव हैं. तिर्थंच योनि में उत्पन्न तिर्यञ्च स्त्रियां भी हैं । नरक एवं नारकी आदि अदृश्य जीवों का जो कथन किया है वह उनकी सत्ता प्रदर्शित करने के लिये जानना चाहिये । (अस्थि माया अस्थि पिया) माता हैं, पिता हैं । कोई २ ऐसे मानते हैं कि माता-पिता यह व्यवहार वास्तविक नही है; क्योंकि ऐसे भी कई जीव हैं कि जो माता-पिता के विना भी उत्पन्न होते रहते हैं। उनकी इस कल्पना को निराकरण करने के लिये भगवान् ने यह कहा है । (अस्थि रिसओ) अतीन्द्रिय अर्थ को देखने वाले ऋषिजन हैं । इस कथन का तात्पर्य यह है कि बहुत से वादी ऐसा कहते हैं कि अतीन्द्रियार्थ द्रष्टा कोई नहीं है; कारण कि पुरुष रागादि से कभी निर्मुक्त नहीं हो सकता । अतः जैसे हमलोग रागादिसंपन्न होने से अतीन्द्रियार्थ के लागुवु लेहये. (अस्थि नरगा अस्थि णेरइया अस्थि तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ) मनेऽविध નરકસ્થાન છે, અને તેમાં રહેવાવાળાં જીવ નારકી છે. તિય ચયેાનિના જીવ છે, તિર્યંચયેાનિમાં ઉત્પન્ન તિર્યંચ સ્ત્રીએ પણ છે. નરક તેમજ નારકી આદિ અદૃશ્ય જીવાતુ જે કથન કર્યું' છે તે તેમની સત્તા अहर्शित उरवा भाटे भगवु . ( अस्थि माया अत्थि पिया ) भाता छे पिता छे. કેાઈ કાઇ એમ માને છે કે માતા પિતા એ વ્યવહાર વાસ્તવિક નથી; કેમકે એવા પણ કેટલાય જીવ છે કે જે માતાપિતા વિના પણ ઉત્પન્ન થતા રહે છે. તેમની આ કલ્પનાનું નિરાકરણ કરવા માટે ભગવાને એમ કહ્યું छे. तथा (अस्थि रिसओ) अतींद्रिय अर्थने लेवावाजा ऋषिश्न छे. आ उथનનુ' તાત્પર્ય એ છે કે ઘણા વાદિઓ એમ કહે છે કે અતીન્દ્રિય—અ—દ્રષ્ટા ફાઈ છે નહિ; કારણ કે પુરુષ રાગાદિથી કઢી પણ નિમુક્ત થઈ શકતા નથી,
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