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ओपपातिकसो यंगे मंगल-जयसद-कयालोए मजणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेग-गणनायग-दंडनायग-राई-सर-तलवरमाडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेहि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवाल
सद्धिं संपडिबुडे धवल-महामेह-णिग्गए इव गहगण-दिप्पंतमङ्गलरूपो जयशब्दः कृतो जनेन आलोके दर्शने यस्य र स्था, 'मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ' मजनगृहात्प्रतिनिष्क्रामति बहिनिर्गच्छति, 'पडिणि मित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य 'अणेगमणनायग-दंडनायग-राई-सर-तलवर-माड कोडुबिय- इब्भ-सेटि - सेणाबह-सत्यवाह-य-संधिवाल सद्धिं संपडिवुड' अनेक-गणनायक-दण्डनायकराजेश्वर-तलवर-माडम्बिक-कौटुम्बिकेभ्य-श्रेष्ठि-सेनापति - सार्थवाह - दूत -. सन्धिपालैः साई सम्परिवृतः-अत्रत्यानि पदानि प्राग् व्याख्यातानि, मजनगृहान्निष्क्रान्तो नरपतिः क इव शोभते ? इत्याह-'धवल' इत्यादि। 'धवल-महामेह-णिग्गए इव' धवल-महामेघनिर्गत इवधवलमहामेघतो निर्गतः मेघावरणविनिर्मुक्त इव 'गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे हो' इस प्रकार का शब्द करने लगे । इस प्रकार वे राजा (मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ) स्नान घर से निकले । (पडिणिक्वमित्ता) निकलते ही ( अणेग-गणनायग-दंडनायग-राई-सर-तलवर-माडं बिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्यवाह-य-संधिवाल सद्धिं संपडिबुडे ) अनेक गणनायकों, अनेक दंडनायकों, राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत एवं संधिपालों से घिरे हुए वे राजा (धवल-महामेह-णिग्गए इव) धवल महामेघ के आवरण से रहित (गहगण-दिप्पंतरिक्व-तारागणाण मज्झे ससिन्ब) ग्रहगणों के बीच में वर्तमान तथा दीप्यमान ऐसे જોતાંજ મનુષ્ય “મંગલ હો જય હો” એ પ્રકારના શબ્દ બોલવા લાગ્યા. भावी रीत ते रात (मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ) स्नान घरमांथी नीया. (पडिणिक्खमित्ता) indiar (अणेग-गणनायग-दंडनायग-राई-सर-तलवर-माडं. क्यि-कोडुबिय-इब्भ-सेद्वि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवाल सद्धिं संपडिबुडे) मने भरनायी, सने हुनायी, २०१, ४श्व२, A२, मामि, डौटुमि, ल्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवा, इत तमा संघियासाथी धेरा (णरवई) ते २in (धवल-महामेह-णिग्गए इव) घर भडाभेधना माव२४थी भुत (गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्व) गायोना क्यमा वर्तमान तथा