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औपपातिक
कयंधयारं चित्त-परित्थोम - पच्छयं पहरणा - वरण- भरिय - जुद्धविराजितम्—सललितौ-लालित्ययुक्तौ यौ वरकर्णपूरौ - प्रशस्तकर्णाभरणे ताभ्यां विराजितम् ' पलंब - ओचूल - महुयर -- कर्यधयारं ' प्रलम्वाडवचूलमधुकर कृताऽन्धकारम् - प्रलम्बाति अवचूलानि=गजपृष्ठादधःप्रलम्बिशृङ्गारवस्त्रांशरूपाणि यस्य तत्तथा, तथा मधुकरैर्मदजलगन्धलुब्धैः कृतः अन्धकारो यत्र तत्तथा, ततः - अनयोः कर्मधारयः, तत्, 'चित्त-परिच्छेयपच्छयं ' चित्र-परिच्छेक - प्रच्छदम् - चित्रो - विचित्रः परिच्छेको = लघुः प्रच्छदः - आच्छादयःवस्त्रविशेषो यस्य तत्तथा तत्, 'पहरणा-वरण- भरिय- जुद्ध-सज्जं ' प्रहरणा - वरण-भृतयुद्धसज्जम्-प्रहरणावरणैरायुधकवचैर्भृतं = सम्भृतम्, अत एव युद्धसज्जं युद्धाय समुद्यतम्, 'सच्छत्तं' पहिरा दिये गये । ( अहियतेयजुत्तं) इससे स्वाभाविकरूप से तेजः संपन्न वह गजराज देखने में और अधिक तेजस्वी दीखने लगा । ( सललिय- वर - कण्णपूर - विराइयं) इसके कान में जो आभूषण - कर्णपूर पहिराने में आये थे वे चलते समय इधर उधर जब हिलते थे तब उनके द्वारा यह गजराज बड़ा ही सुहावना लगता था । ( पलंब-ओचूल-महुयरकधया) इस पर जो झूल डाली गई थी वह पीठ से नीचे तक लटक रही थी । इसके कपोल स्थल से जो मदजल झर रहा था और उसकी सुगन्धि से जो भ्रमरसमूह उसके आसपास मंडरा रहा था वह ऐसा मालूम होता था कि मानो इसकी शरण में अंधकार ही आया है । (चित्त-परित्थोम - पच्छयं) इसकी पीठ पर झूल के ऊपर जो छोटा सा आच्छादकवस्त्र डाला गया था वह सुन्दर बेलबूटियों से युक्त था । (पहरणा - वरण- -भरियजुद्ध - सज्ज) प्रहरण - शस्त्र और आवरण - कवच से सुसज्जित यह हाथी ऐसा मालूम पड़ता था कि मानो यह युद्ध के लिये ही सजाया गया है। (सच्छत्तं) यह छत्रसहित था । तेयजुत्तं ) माथी स्वाभाविक तेल्थी संपन्न ते गमरान वधारे तेस्वी हेमाता हतो. (सललिय- वर- कप्णपूर - विराइयं) तेना अनमां ने भालूषाणुકપૂર પહેરાવવામાં આવ્યાં હતા તે ચાલતી વખતે જ્યારે આમતેમ હાલતાં तांत्यारे तेनाथी भागवरान मडुन शोलायमान सागतो तो. ( पलंबओ चूल - महुयर - कथंधयारं ) तेना पर ने जूस राजी हुती ते पी थी नीचे सुधी લટકી રહી હતી. તેના ગ`ડસ્થલથી જે મદજલ ઝરી રહ્યું હતું તથા તેની સુગ'ધથી જે ભમરાઓના સમૂહ તેની આસપાસ ફરતા રહેતા હતા તેથી शुभ भगा तु लागे तेना शरशुभां अंधार मान्यो छे. ( चित्तपरिच्छेय. पच्छयं ) तेनी पीठ पर जूस ते सुंदर वेस यूटियोथी युक्त तु
उपर नानुं ढांडे वस्त्र नाच्यु तुं (पहरणावरण भरिय - जुद्ध- सज्जं ) प्रहरशुશસ્ત્ર અને આવરણુ-કવચથી સુસજ્જિત આ હાથી એવા લાગતા હતા કે