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________________ पीयूषवर्षिणी टीका सु. ४२ हस्त्या सिजनम् सनं सच्छत्तं सज्झयं सघंटं सपडागं पंचामेलय - परिमंडियाभिरामं ओसारिय - जमल-जुयल - घंटं विज्जुपिणद्धं व कालमेहं उपपाइयपव्वयं व चंकमंत मत्तं गुलगुलंतं मण-पवण - जइण - वेगं सब्छत्रम् - छत्रयुक्तम्, 'सज्झयं ' सध्वजम् - ध्वजयुक्तम् ' सघं ' सघण्टम् - घण्टाभूषितो - भयपार्श्वम्, 'पंचामेलय - परिमंडिया - भिरामं ' पञ्चामेलक- परिमण्डिताऽभिरामम्पश्चभिरामेलकैः=पञ्चवर्णाभिः पुष्पमालाभिः परिमण्डितम् - अतएव अभिरामं सुन्दरं यत्तथा तत्, ' ओसारिय - जमल-जुयल --घंटं ' अवसारित - यमल - युगल - धण्टम्-अवसारितम्= अधोऽवलम्बितं यमलं=समं युगलं द्विकं घण्टयोर्यत्र तत् तथा तत्, ' विज्जुपिणद्धं ' विद्युत्पिन द्रम्-विद्युद्विद्योतितं ‘कालमेहं व ' कालमेघमिव - गजस्य कृष्णवर्णत्वात् उच्चतया च मेघोपमा, ' उप्पाइय-पव्त्रयं व औत्पातिकपर्वतमिव - अकस्मान्नूतनसमुद्भूतपर्वतमिव, ' चं कमंतं ' ' चङ्क्रम्यमाणम् - अतिशयेन क्राम्यत् - स्वाभाविकपर्वतो हि न चङ्क्र भावः । ' गुलगुलंतं ' ध्वनत् = महामेधवद् ध्वनिं कुर्वत्-इत्यर्थः, 'मण-पत्र - जइण- वेगं ' ( सज्झयं ) ध्वजासहित था ( सघंट) घंटाओं से इसके उभयपार्श्व युक्त थे । (पंचामेलयपरिमंडिया - भिरामं ) पांचवर्ण के पुष्पमाला पहनाने के कारण यह अत्यन्त सुन्दर लगता था । (ओसारिय-जमल-जुयल - घंटं ) नीचे तक एक ही साथ लटकते हुए दो घंटों से यह शोभित था । (विज्जुपिणद्धं ) इस पर जो भी आभरण सजाये गये थे वे बिजली समान चमकते थे, अतः यह गजराज ( काल मेहं व ) कृष्णवर्ण होने से काला मेघ के जैसा ज्ञात होता था । (चंकमतं उत्पाइयपव्त्रयं व ) चलते समय यह औत्पातिक पर्वत समान दिखायी देता था । (गुलगुलंतं ) जब यह चिंधाडता था तो ऐसा प्रतीत होता भागे थे युद्धने भाटे ४ सन्नमेो छे. ( सच्छत्तं ) मे छत्रसहित हतो. (सज्झयं) ध्वन्नसहित डतो. ( सघंट) घंटाओ। मन्ने मान्नु सटती हुती. (पंचामेलय - परिमंडिया - भिरामं ) पांय वर्गुनी पुष्पमाला पडेराववाथी मे सुंदर सागतो इतो. (ओसारिय- जमल-जुयल - घंटं) नीथे सुधी थे मे घ ंटामोथी ते शोलतो तो. ( विज्जुपिण ) तेना पर સજાએલાં હતાં તે વીજળીના જેવાં ચમકતાં હતાં. આથી (कालमेहं व ) ष्णुवर्ग होवाथी अदा भेघना नेवो भगात हुतो. (चंकमंत उप्पा इयपव्वयं व) न्यासती वमते मे सौत्याति पर्वतना वो जातो तो. (गुलगुलंतं) न्यारे ते मराडतो तो त्यारे से प्रतीत थतुं तु लागे ३७५ લટકતા साथै अह आमरण આ ગજરાજ
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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