________________
३५८
औपपातिकसूत्रे
6
अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, [अप्पेगइया ] पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जीयमेति कट्टु पहाया कयवलिकम्मा कय- कोउय-मंगलविरतिपूर्वकं मुण्डिताः-कृतकेशलुञ्चनाः सम्पद्य 'अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो' अगाराद्=गृहाद् अनगारिकतां= साधुत्वं प्रव्रजिष्यामः = प्राप्स्यामः - अनगारा भविष्यामः, 'अप्पेगइया' अप्येकके ‘पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो ' पञ्चानुव्रतिकं सप्तशिक्षाव्रतिकं द्वादशविधं गृहिधर्मं प्रत्रजिष्यामः, ' अप्पेगइया' अप्येकके' जिण - भत्ति - रागेणं ' जिनभक्तिरागेण, 'अप्पेगइया ' अप्येकके, 'जीयमेयंति कट्टु ' जीतमेतदिति कृत्वा - कुलाचारोऽयमिति मत्वा, 'व्हाया ' स्नाताः - ' कयवलिकम्मा ' कृतबलिकर्माणः, 'कय - कोउय - मंगल - पायच्छित्ता ' कृत - कौतुक - मङ्गल--प्रायश्चित्ताःइस्लामो) सावध व्यापारों से सर्वथा विरत होकर, केशलुंचनपूर्वक गार्हस्थिक अवस्था का परित्याग कर अनगार बनेंगे - इस प्रकार की भावना से, तथा कितनेक - ( पंचाणुव्व इयं सिसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो) पांच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रत के भेद से १२ भेदरूप गृहस्थ के धर्म को स्वीकार करेंगे - इस भावना से, (अप्पेगइया) कितनेक (जिगभत्तिरागेणं) जिनेन्द्र की भक्ति करेंगे इस प्रकार भक्ति के अनुराग से, (अप्पेगइया,) कितनेक (जीयमेयंत्ति कट्टु ) यह हम लोगों का कुलाचार है-इस प्रकार मान कर (व्हाया ) स्नान किये, ( कयवलिकम्मा) काक आदि को अन्नादि दान रूप बलिकर्म किये, ( कय- कोउय-मंगल- पायच्छित्ता) दुःस्वप्नादि निवारण के लिये रियं पव्व सामो) सावध व्यापारोथी सर्वथा विरत थर्धने देशसु यानपूर्व ગાર્હ સ્થિક અવસ્થાના પરિત્યાગ કરીને અનગાર અન-એ પ્રકારની ભાવनाथी, तथा डेटा ( पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिसामो) : आयुक्त तेभन सात शिक्षामतना मेथी १२ लेह ३५ गृहस्थना धर्मनो स्वी४२ ४२शु खेवी भावनाथी, ( अप्पेगइया ) उटवाउ ( जिगभत्तिरागेणं) भनेन्द्रनी लड़ित रशु से प्रहारनी लतिना अनुरागथी, (अप्पेगइया ) डेंटला ( जीयमेयंति कट्टु ) या अभारी हुसायार छे-थे अरनी मान्यताथी, ( ण्हाया ) स्नान री ( कय - बलि - कम्मा ) अगडा महिने अन्न माहि हान३य अलिर्भ ४ ( कय- कोउय - मंगल - पायच्छित्ता) दुःस्वप्नाहि निवारणने भाटे भसी तिस हड्डी थोमा आदि धारण इरी, ( सिरसा कंठे