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पोषवर्षिणो-टोका सू. ३८ भगवदर्शनार्थ जनोत्सुक्यम् गइया अडविणिच्छयहेउं अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाइं निस्संकियाइं करिस्सामो, अप्पेगइया अट्ठाई हेऊइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सव्वओ समंता मुंडे भवित्ता अपूर्वदृष्टदर्शनार्थमित्यर्थः । 'अप्पेगइया' अप्येकके–केचित् 'अट्ठ-विणिच्छय-हेउं' अर्थविनिश्चयहेतु-अर्थानां जीवाजीवादिभावानां यत् स्वरूपं तस्य विनिश्चयो हेतुर्यस्मिस्तत्, जीवाजीवादिस्वरूपविनिश्चयार्थमित्यर्थः, 'अस्सुयाई' अश्रतानि आगमरहस्यानि, 'सुस्सामो' श्रोष्यामः-इत्याशया, 'सुयाई निस्संकियाइं करिस्सामो' श्रुतानि निशङ्कितानि करिष्यामःइत्याशया, 'अप्पेगइया' अप्येकके-केचित्–'अट्ठाई हेऊइं कारणाइं वागरणाई' अर्थान् हेतून् कारणानि व्याकरणागि, तत्र-अर्थान्-जीवाजीवादिनवतत्त्वरूपान् भावान् , हेतून् --- जीवादिस्वरूपसाधकान् , कारणानि अन्यथाऽनुपपत्तिमात्ररूपाणि व्याकरणानि परपृष्टार्थोत्तररूपाणि 'पुच्छिस्सामो' प्रक्ष्यामः, 'अप्पेगइया' अप्येकके, 'सव्वओ समंता मुंडे भवित्ता' सर्वतः समन्ताद् मुण्डा भूत्वा-सर्वतः सावद्यव्यापार(अप्पेगइया) कितनेक (अविणिच्छयहेउ) जीव अजीव-आदि पदार्थों के स्वरूप को निश्चय करने के लिये, तथा (अस्मुसाई सुणेस्सामो) आगम के रहस्य जो पहिले कभी सुनने में नहीं आये हैं उन्हें सुनेंगे, और (सुयाई निस्संकियाइं करिस्सामो) जो आगम के रहस्य सुने हैं उन्हें शंका रहित करेंगे इस प्रकार की भावना से, (अप्पेगइया) और कितनेक (अट्ठाइं हेऊइं कारणाइं वागरणाई पुच्छिस्सामो) जीव अजीव आदि नव तत्त्वरूप भावों को, जीवादिक के स्वरूप के साधकरूप हेतुओं को, अन्यथानुपपत्तिरूप कारणों को, एवं पर के द्वारा पूछे गये अर्थ के उत्तररूप व्याकरण को पूछेगे इस प्रकार की भावना से, (अप्पेगइया) कितनेक (सव्यओ समंता मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पदनडि यी तमन ने भाटे, (अप्पेगइया ) ॥४ ( अट्टविणिच्छयहेउ)
4-04 आदि पार्थानां २१३५न। निश्चय ३२वाने भाटे तथा (अस्सुयाई सुणेस्सामो) माजमना स्य २ ५९सा ही सामन्यां नहाता ते समशु, तथा (सुयाई निस्संकियाइं करिस्सामो) ने मामनु २७२य सामन्यु तेने शा२डित ४२शु. से प्रा२नी भावनाथी, (अप्पेगइया) तथा टा४ (अट्ठाई हेऊई कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामो) १ २0१ २माहि नवतत्प३५ लावाने, જીવ આદિકનાં સ્વરૂપનાં સાધકરૂપ હેતુઓને, અન્યથાનુપપત્તિ રૂપ કારણોને તેમજ બીજ દ્વારા પૂછાતા અર્થના ઉત્તરરૂપ વ્યાકરણને પૂછશું-એ પ્રકારની ભાવनाथी, ( अप्पेगइया) ४९४ (सव्वओ समंता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगा