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पोयूषर्षिणी टीका सू. ३० ध्यानभेदवर्णनम् पुहुत्तवियके सवियारी १, एगत्तवियके अवियारि २, सुहुमकिरिए अप्पडिवाई ३,समुच्छिन्नकिरिए अणियट्टी४।सुक्कस्स णं झाणस्स त्यवतारं प्रज्ञतम् । यथा मलापगमेन शुचिताधर्माभिसम्बन्धात् पटः शुक्लः इत्युच्यते, तथा रागद्वेषमलापनयनाच्छुचिताधर्मसम्बन्धाद् ध्यानमपि शुक्लमित्युच्यते, तच्चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद् यथा-'पुहुत्तवियक्के सवियारी' पृथक्त्ववितर्क सविचारि १, 'एगत्तवियके अवियारि' एकत्ववितर्कमविचारि २, 'मुहुमकिरिए अप्पडिवाई' सूक्ष्मक्रियमप्रतिपाति, ३, 'समुच्छिन्नकिरिए अणियट्टी' समुच्छिन्नक्रियमनिवर्तिं ४-इति ।
____ तत्र पूर्वगतश्रुतज्ञानानुसारेण ध्येयविशेषगतोत्पादादिनानापर्यायाणां द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकादिनानानयैरर्थव्यञ्जनयोगलंक्रान्तिसहितानुचिन्तनं पृथक्त्ववितर्कसविचारम् ॥१॥ प्रकार का कहा गया है। जिस तरह मैल के दूर होने से वस्त्र बिलकुल साफ हो जाता है
और “शुक्लः पटः" इस प्रकार कहा जाता है, उसी तरह रागद्वेषरूपी मैल के अपगमसे ध्यान भी शुद्ध हो जाता है और इसीसे वह शुक्लध्यान कहा जाता है । (तं जहा) इसके वे चार प्रकार ये हैं-(पुत्तवियके सवियारी) पृथक्त्वतर्कसविचार, (एगत्तवियके अवियारि) एकत्ववितर्क अविचार, (मुहुमकिरिए अप्पडिवाई) सूक्ष्मक्रिय-अप्रतिपाती, (समुच्छिन्नकिरिए अणियट्टी) समुच्छिन्नक्रिय-अनिवर्त्ति । इनका वर्णन इस प्रकार है-पूर्वगत श्रुतज्ञान के अनुसार ध्येयविशेषगत उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य आदि पर्यायों का द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नयों से अर्थसंक्रान्ति, व्यंजनसंक्रान्ति एवं योगसंक्रान्ति युक्त होकर विचार करना सो पृथक्त्वविर्तकसविचार शुक्लध्यान का प्रथम भेद है ॥१॥ जिस तरह सिद्धगारुडिक आदि બન તેમજ અનુપ્રેક્ષાના ભેદથી સેળ પ્રકારનું કહેવાય છે. જેવી રીતે મેલ દેવાઈ
पाथी वर मिसस स २७ छ भने “शुक्लः पटः" से मारे કહેવાય છે, એ જ રીતે રાગદ્વેષરૂપી મેલ દૂર થઈ જવાથી ધ્યાન પણ શુદ્ધ २४ तय छ, मने ते ४२४थी तेने शुभसध्यान ४वाय छे. (तं जहा) तेना यार प्रा२ मा छे-(पुहुत्तवियके सवियारी) पृथत्ववित-सपियार (एगत्तवियक्के अवियारि) सत्पवित-मविया२ (सुहुमकिरिए अप्पडिवाई) सूक्ष्भडिय--मप्रतिपाती (समुच्छिन्नकिरिए अणियट्टी) समुछिन्नडिय-निवृत्ति.
પૂર્વગત શ્રુતજ્ઞાન અનુસાર ધ્યેયવિશેષથી થતા ઉત્પાદ, વ્યય તેમજ ધ્રૌવ્ય આદિ પર્યાના દ્રવ્યાર્થિક નથી, અર્થસંક્રાંતિ, વ્યંજનસંક્રાંતિ તેમજ યંગસંક્રાંતિથી યુકત થઈને વિચાર કરવો તે પૃથકત્વવિતર્કસવિચાર શુકલध्याननी प्रथम प्र४२ छ (१).