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या उच्चार- पासवण- खेल - जल्ल-सिंघाण पारिडावणिया-समिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिं
औपपातिक
तयोर्निक्षेपणे–अवस्थापने समिताः - सुप्रतिलेखन - मार्जनाद्युपयोगपूर्वकप्रवृत्तियुक्ताः, 'उच्चारपासवण - खेल - जल्ल-सिंघाण - पारिट्ठावणिया – समिया' उच्चार - प्रस्रवण - श्लेष्म- जल्लशिङ्घाण - परिष्ठापनिका - समिताः, तत्र - उच्चारः - पुरीषम्, प्रस्रवणं-मूत्रं, खेल:- श्लेष्मा, उपलक्षणत्वान्निष्ठीवनस्यापि ग्रहणम्, जल्लः - स्वेदजमलम्, शिङ्खाणं- नासिकामलम्, एतेषां परिष्ठापनिकापरिष्ठापना-परित्यागः–सैव परिष्ठापनिका, स्वार्थे कः, तस्यां समिताः, शुद्धस्थण्डिलाश्रयणात्सम्यगुपयुक्ताः । ' मणगुत्ता' मनोगुप्ताः - (१) त्रिविधा मनोगुप्तयः - आर्त्तरौद्रध्यानानुबन्धिकल्पनाजालबियोगः प्रथमा ( २ ) शास्त्रानुसारिणी परलोकसाधिका धर्मध्यानानुबन्धिनी माध्यस्थ्यपरिणतिर्द्वितीया, (३) सकलमनोवृत्तिनिरोधेन योगनिरोधाऽवस्थाभाविनी–आत्मरमणरूपा
अर्थात् पात्र एवं वस्त्रादिक उपकरणों के सुप्रतिलेखन प्रमार्जनादिक में ये सब उपयोगपूर्वक प्रवृत्तिं करने वाले थे । ( उच्चार- पासवण - खेल - जल्ल-सिंघाण - पारिट्ठावणिया - समिया) उच्चार - पुरीष, प्रस्रवण - मूत्र, खेल - श्लेष्मा, उपलक्षण से निष्ठीवनथूकना, जल्ल- स्वेदज मेल, शिंघाण - नासिका का मेल इन सबके परिष्ठापन - रूप समिति से युक्त थे | ( मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता ) गुप्ति तीन प्रकार की है - मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति; इनमें मनोगुप्ति तीन प्रकारकी है - आर्त्त एवं रौद्रध्यान का परित्याग करना प्रथम मनोगुप्ति है, शास्त्र के अनुसार, परलोक की साधक और धर्मध्यान के साथ अनुबन्ध रखने वाली माध्यस्थ्यपरिणतिरूप द्वितीय मनोगुप्ति है । सकल मनोवृत्ति के निरोध से योगों की निरोधावस्था में होनेवाली परिणति - आत्मा में रमणरूप परिणति
સુપ્રતિલેખન અને પ્રમાન આફ્રિકમાં તે બધા ઉપયાગપૂર્વક પ્રવૃત્તિ કરવાવાળા हुता. उच्चार-प।सवण-खेल-जल्ल-सिंघाण पारिद्रावणिया -समिया ) उभ्यार=पुरीष, प्रसवणु=भूत्र, भेस=श्लेष्मा, उपलक्षणथी निष्ठीवन - थुम्वु, भस - परसेवाना भेस, शिघाणु - नाना भेटा, मा अधाना परिष्ठायन३५ समितिथी युक्त ता. (मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता) गुप्तित्र प्रहारनी छे मनोगुप्ति, वन्यनशुप्ति मने यशुप्ति, તેમાં મનેાપ્તિ ત્રણ પ્રકારની છે-આત્ત તેમજ રૌદ્ર ધ્યાનના પરિત્યાગ કરવા એ પ્રથમ મનેાપ્તિ છે, શાસ્ત્રને અનુસરનારી પરલેાકની સાધક અને ધમ ધ્યાનની સાથે અનુબંધ રાખનારી માધ્યસ્થ્યપરિણતિરૂપ બીજી મનેાપ્તિ છે. બધી મનેાવૃત્તિ માત્રના નિરોધથી યાગાની નિરોધાવસ્થામાં થનારી પરિણતિ-આત્મામાં