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________________ औपपातिकसूत्रे पुनः एवमादयः - एवम्प्रकाराः, एवमाइणो उत्तम - जाइ - कुल - रुब - विणय विष्णाण - वण्णलावण्ण - विक्कम - पहाण - सोभग्ग-कंति- जुत्ता बहु-धण-घण्ण'अण्णे ' अन्ये-उक्तातिरिक्ताः, ' बहवे ' बहवः - बहुसंख्यकाः ' एत्रमाणो ' उत्तम-जाइ-कुल- रूत्र- विणय-त्रिष्णाणवण्ण-विकम- पहाणसोभग्ग-कंति- जुत्ता' उत्तम-जाति-कुल- रूप-विन - विज्ञान - वर्ण - लावण्य - विक्रम - प्रधानसौभाग्य-कान्ति-युक्ताः – उत्तमाः - श्रेष्ठा जात्यादयो विक्रमान्ताः तत्र - जातिर्मातुर्वंशः, कुलंपितृवंशः, रूपं– शरीराऽऽकारः, विनयः - कायिक-वाधिक मानसिक विशुद्धिर्नम्रता च, विज्ञानसंसाराऽसारतारूपं विशिष्टज्ञानं, वर्णः- कायकान्तिः, लावण्यम् - आकारस्यैव स्पृहगीयता, विक्रमः पराक्रमः, प्रधाने-श्रेष्ठे ये सौभाग्यकान्ती - सौभा - सुन्दरभाग्यम्, कान्तिः - दीप्तिः- एताभ्याम् सौभाग्यकान्तिभ्याम्, तथा उत्तमजाव्यादिभिक्ता उत्तमजात्यादिमन्तः प्रत्रजिताः, तथा बहु - धन - धण्ण- णिचय - परियाल - फिडिया ' बहु- धन-धान्य - निचय-परिवार( अण्णेय बहवो एवमाइणो ) भगवान के समीप और भी बहुत से प्रव्रजित हुए थे, वे सब ( उत्तम - जाइ -कुल- रूत्र - विषय - विष्णाण-वण्ण-लावण्ण- विक्कमपहाण - सोभग्ग - कंति - जुत्ता) उत्तमजाति = निर्मलमातृवंश, उत्तमकुल = निर्मलपितृवंश, उत्तमरूप = सुन्दर आकार, विनय = कायिक वाचिक मानसिक विशुद्धि, अथवा नम्रता, विज्ञान=संसार को असार समझने की बुद्धि, वर्ण-शरीरकान्ति, लावण्य= शरीर का जगमगाहट, विक्रम = शारीरिक बल, श्रेष्ठ सौभाग्य और उत्तम दीप्ति से युक्त थे । ( बहु - धन - धण्ण - णिचय - परियाल - फिडिया णरवइ-गुणा - इरेगा इच्छियभोगा सुहसंपल लिया) कितनेक इस शिष्यमंडली में ऐसे भी थे जो दीक्षित होने के पहिले गणिम एवं धरिमरूप धन की एवं शाली आदि धान्य की राशियों से, और 4 १४४ यशु धष्णाय प्रत्रभित थया हुता. तेथे मधा (उत्तम-जाइ-कुल- रूव-विणय-विष्णाण-वण्ण लावण्ण-विक्कम-पहाण- सोभग्ग कंति - जुत्ता ) (त्तमन्नति=निर्माण मातृवश, उत्तमકુળ=નિર્મળ પિતૃવંશ, ઉત્તમરૂપ=સુંદરઆઇ ૨, વિનયકાયિક વાચિક માનસિક विशुद्धि, नम्रता, विज्ञान - संसारने असार समन्वानीबुद्धि, वर्ण-शरीरनी કાંતિ, લાવણ્ય શરીરના ઝગમગાટ, વિક્રમશારીરિકખલ, શ્રેષ્ઠ સૌભાગ્ય તથા उत्तम हीसिवाजा हुता. (बहुधण-घण्ण- णिचय परियाल फिडिया णरवइ - गुणा - इरेगा इच्छियभोगा सुहसंपल लिया ) उटझाखे आा शिष्यम उसी मां सेवा पशु हुता કે જે દીક્ષિત થયા પહેલાં ગણમ તેમજ ધરમરૂપ ધનના, તેમજ શાલી આદિ ધાન્યના ઢગલાથી અને દાસદાસીએ આદિ પરિવાર સમુદાયથી રાજસી
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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