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________________ पोयूषवर्षिणी-टीका. सू. १६ भगवन्महावीरस्वामिवर्णनम् तारए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयगे सव्वन्नू सव्वदरिसी सिव-मयलभित्ताद्यावरगस्खलितं न प्रतिहतम्-अप्रतिहतं, ज्ञानञ्च दर्शनञ्चति ज्ञानदर्शने, वरे श्रेष्ठे च ते ज्ञानदर्शने-वरज्ञानदर्शने-केवलज्ञानकेवलदर्शने, अप्रतिहते वरज्ञानदर्शने-अप्रतिहतवरज्ञानदर्शने, धरतीति धरः-अप्रतिहतवरज्ञानदर्शनयोधरः-अप्रतिहतवरज्ञानदर्शनधरःआवरणरहितकेवलज्ञानकेवलदर्शनधारी। 'वियदृच्छउमे' व्यावृत्तच्छमा-छाद्यतेआत्रियते केवलज्ञान-केवलदर्शनाद्यात्मनोऽनेनेति छद्म-घातिककर्मवृन्दं-ज्ञानावरणीयादिरूपं कर्मजातम्, व्यावृत्तं-निवृत्तं छद्म यस्मात् स व्यावृत्तच्छद्मा। 'जिणे' जिनःरागद्वेषशत्रुविजेता । 'जावए' जापकः-जापयति रागद्वेषादिशत्रून् जयन्तं भव्यजीवगणं धर्मदेशनादिना प्रेरयतोति जापकः । 'तिण्णे' तीर्णः-स्वयं संसारौघं तीर्णः-उत्तीर्णः । 'तारए' तारकः-तारयति-तरतोऽन्यान् भव्यजीवान् प्रेरयतीति तारकः। 'बुद्ध' बुद्धः-स्वयं वरण एवं वर=श्रेष्ठ है अर्थात् प्रभु आवरणरहित केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक हैं। (वियदृच्छउमे ) केवलज्ञान एवं केवलदर्शनादिक जिसके द्वारा आवृत होते हैं वह यहां छद्म शब्दसे गृहीत हुआ है, अतः इस दृष्टिसे 'छद्म' शब्दका अर्थ घातिक कर्म होता है, यह छद्म प्रभुकी आत्मासे सर्वथा निवृत्त हो चुका है, इसलिये प्रभु व्यावृत्तछद्म हैं। (जिणे ) रागादिक अन्तरंग शत्रुओं पर विजय पाने से प्रभु जिन हैं। (जावए) जोतनेवाले भव्यजीवों को प्रभु ने अपनी धर्मदेशना द्वारा आत्मकल्याण के मार्ग की ओर प्रेरित किया, इसलिये प्रभु जापक-जितानेवाले हैं । (तिण्णे) संसारसमुद्र से पार होने की वजह से प्रभु स्वयं तीर्ण हैं। ( तारए) भगवान ने संसारसमुद्र से पार होने के इच्छावाले जीवों को प्रेरित किया इसलिये અનંતજ્ઞાન તેમજ અનંત દર્શન અપ્રતિહત-નિરાવરણ તેમજ વર શ્રેષ્ઠ છે અર્થાત્ પ્રભુ આવરણુરહિત કેવલજ્ઞાન અને કેવલ દર્શનના ધારક છે. (वियदृच्छउमे) सज्ञान तम उपस शनाहि ॥ द्वारा दोनय छ તે અહીં છદ્મ શબ્દથી લેવામાં આવેલ છે. આમ એ દૃષ્ટિથી છદ્મ શબ્દને અર્થ ઘાતિકકર્મ થાય છે. આ છ પ્રભુના આત્માથી સર્વથા નિવૃત્ત થયેલ छे. माटे प्रभु व्यावृत्त-छम छ. (जिणे) शाहि तर शत्रुस। ५२ विश्य भेजवाथी प्रभु सिन छ. (जावए) wait भव्य ७वाने प्रभुसे પિતાની ધર્મદેશના દ્વારા આત્મકલ્યાણના માર્ગના તરફ પ્રેરિત કર્યા તે માટે પ્રભુ १५४-छतावावा छ. (तिण्णे) संसार समुद्रथी ॥२ थवाना रणे प्रभु पाते ती छे. (तारए) भगवाने संसा२ समुद्रथी पा२ थवाना छापावाने
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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